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________________ 2. अन्तिम मोक्षगामी श्री जम्बू स्वामी जी योग-त्याग के अविरल साधक, युवा जम्बूकुमार। अन्तिम केवलज्ञानी गुरुवर, नित् वंदन बारम्बार॥ शासनपति तीर्थंकर महावीर स्वामी जी के द्वितीय पट्टालंकार आचार्य श्री जंबू स्वामी जी अवसर्पिणी काल में भरत क्षेत्र से मोक्ष जाने वाली अंतिम भव्यात्मा थे। प्रत्येक मुमुक्षु के लिए प्रकाशस्तंभ की तरह पथ प्रदर्शक जम्बू स्वामी जी का जीवन आध्यात्मिक साधना की अमिट संकल्प शक्ति की लौ से प्रकाशित है। जन्म एवं दीक्षा : मगध की राजधानी-राजगृह में ऋषभदत्त श्रेष्ठी अपनी धर्मपत्नी धारिणी के साथ सुखपूर्वक जीवन व्यतीत कर रहे थे। लक्ष्मी की उन पर अपार कृपा थी। धारिणी भी विनय-विवेक आदि गुणों से युक्त सद्धर्मचारिणी श्राविका थी। सभी प्रकार के सुख होने पर भी संतान न होने से वह चिंतित रहती थी। - एक बार भगवान् महावीर का आगमन राजगृही के वैभारगिरि पर्वत पर हुआ। वे दोनों भी प्रभु की देशना सुनने हेतु गए। उपदेश श्रवण करते-करते धारिणी ने मन में ही प्रभु से पूछने का सोचा कि उसे पुत्र-प्राप्ति में हो रहे अन्तराय को दूर करने के लिए किस देव को अनुकूल करना चाहिए? संयोग से प्रभु ने अपनी देशना में नमस्कार मंत्र के पुण्य प्रताप से देवत्व को प्राप्त हुए जंबूद्वीप के अधिष्ठायक अनादृत देव का वृत्तांत सुनाया। धारिणी ने इसे ही अपना उत्तर समझते हुए जम्बूद्वीपाधिपति के नाम पर 108 आयम्बिल की तपस्या प्रारंभ की। सातवें दिन ही विद्युन्माली नामक देव का जीव ब्रह्मदेवलोक से च्यवित होकर ऋषभदत्त की पत्नी धारिणी की कुक्षि में अवतरित हुआ। मध्यरात्रि में अर्धनिद्रित अवस्था में धारिणी ने स्वप्न में जंबू वृक्ष देखा। वीर निर्वाण से 16 वर्ष पूर्व (विक्रम पूर्व 486) धारिणी की कुक्षि से पुत्ररत्न का जन्म हुआ और उसका नाम - जंबू कुमार रखा गया। बालक जंबू अत्यंत रूपसंपन्न, तेजस्वी, महावीर पाट परम्परा
SR No.002464
Book TitleMahavir Pat Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChidanandvijay
PublisherVijayvallabh Sadhna Kendra
Publication Year2016
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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