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________________ श्रावक, सुलसा-रेवती-जयंती जैसी श्राविकाएँ भगवान् महावीर के तीर्थ के अंग थे। गणधर भगवंतों भगवान् महावीर के अनंत ज्ञान को ग्रहण कर आगम की रचना की। O निर्वाण : तीर्थंकर भगवान् महावीर स्वामी जी ने 30 वर्षों तक केवली पर्याय में विचरण कर स्थान-स्थान पर धर्मोपदेश दिया एवं अनेकों भव्य आत्माओं को मोक्ष मार्ग का पथिक बनाया। भगवान् के 9 गणधर उनके जीवन काल में ही मोक्षगामी हो गए। उनके शिष्य सुधर्म स्वामी जी के गण में सम्मिलित होते गए । जब महावीर स्वामी जी के परिनिर्वाण का अंतिम समय निकट आया तो शक्रेन्द्र ने प्रभु वीर को नम्र निवेदन करते हुए कहा " भगवन्! आपके गर्भ, जन्म, दीक्षा और केवलज्ञान में हस्तोत्तरा नक्षत्र था। इस समय उसमें भस्मग्रह संक्रान्त होने वाला है। वह ग्रह आपके जन्म नक्षत्र में आकर 2,000 वर्षों तक आपके जिनशासन के प्रभाव के उत्तरोत्तर विकास में अत्यधिक बाधक हो सकता है। इसीलिए, जब तक वह आपके जन्म नक्षत्र में संक्रमण कर रहा है, तब तक आप अपना आयुष्य बल स्थित रखें। " तब भगवान् महावीर ने कहा 'शक्र ! आयुष्य कभी बढ़ाया नहीं जा सकता। ऐसा न कभी हुआ है, न कभी होगा । दूषम काल के प्रभाव से जिंनशासन में अगर बाधा होती है, वह तो होगी ही । " प्रभु के वचन सुन शक्रेन्द्र शांत रहा । - तीर्थंकर महावीर ने पावापुरी के राजा हस्तिपाल की रज्जुकसभा में अंतिम चातुर्मास किया। उनकी अंतिम देशना 16 प्रहर (48 घंटे) की थी। छठ की तपस्या करते-करते, प्रधान नामक अध्ययन कहते कहते, कार्तिक मास की अमावस्या के दिन शैलेशी अवस्था को प्राप्त कर शेष अघाती कर्मों का क्षय कर महावीर स्वामी जी मुक्त अवस्था को प्राप्त हुए अर्थात् निर्वाण (मोक्षगमन) हुआ। कुल 72 वर्ष की आयु भोगकर ईसापूर्व 527 में उनका निर्वाण हुआ। उसी रात्रि भगवान् के ज्येष्ठ शिष्य इन्द्रभूति गौतम स्वामी जी को केवलज्ञान की प्राप्ति हुई। अमावस्या की उस रात्रि देवों के आगमन से भूमंडल आलोकित हुआ एवं भाव उद्योत के विरह से मानवों ने द्रव्य उद्योत स्वरूप दीप संजोये । उस दिन से दीपमालोत्सव (दीपावली) का पर्व प्रारंभ हुआ। कार्तिक शुक्ल एकम से पंचम दीर्घजीवी गणधर श्री सुधर्म स्वामी जी का पट्टालंकरण हुआ एवं उन्होंने श्रमण भगवान् महावीर की परम्परा का संवहन किया। महावीर पाट परम्परा 4
SR No.002464
Book TitleMahavir Pat Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChidanandvijay
PublisherVijayvallabh Sadhna Kendra
Publication Year2016
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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