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________________ केशलोच कर, वस्त्राभूषण परित्याग कर एवं “करेमि सामाइयं सावज्जं जोगं पच्चक्खामि जाव वोसिरामि" का उच्चारण कर विश्व के सभी जीवों को अभयदान देते हुए दीक्षा अंगीकार की। गर्भ से ही प्रभु मति-श्रुत-अवधि ये 3 ज्ञान के धारक थे। दीक्षा लेते ही उन्हें चौथा मन पर्यव ज्ञान प्रकट हुआ। इन्द्र ने उन्हें देवदूष्य वस्त्र प्रदान किया जो जीताचार समझकर महावीर प्रभु ने धारण किया। दीक्षा पश्चात् प्रथम चातुर्मास में महावीर ने 5 प्रतिज्ञाएँ ग्रहण की - अप्रीतिकारक स्थान में नहीं रहूंगा, सदा ध्यानस्थ रहूंगा, मौन रखूगा, हाथ में भोजन करूँगा, गृहस्थों का विनय नहीं करूँगा। उनके दीक्षा जीवन में शूलपाणि यक्ष, संगम देव, कटपूतना देवी, ग्वाले, गोशालक, पशु-पक्षी आदि ने उपसर्ग पर उपसर्ग दिए किंतु महावीर प्रभु ने समभावपूर्वक सहन किए एवं प्राणिमात्र के प्रति केवल और केवल करुणा का सिंचन किया। - केवलज्ञान : . आर्य-अनार्य क्षेत्रों में विचरण करते हुए, आत्मा पर लगे कर्मों के आवरण को दूर करते हुए एवं आत्मा से परमात्म पद की कंटकाकीर्ण यात्रा करते हुए दीक्षा के पश्चात् 12 वर्षों तक घोर लंबी साधना के बाद उन्हें परिपूर्ण ज्ञान प्राप्त हुआ। कुल 12 वर्ष के साधक जीवन में उन्होंने केवल 349 दिन आहार ग्रहण किया एवं 4166 दिन निर्जल तपस्या की। वैशाख शुक्ला 10 के दिवस के अंतिम प्रहर में गोदुहिकासन में जंभियग्राम के निकट ऋजुबालुका नदी के किनारे खेत में मोहनीय-ज्ञानावरणीय-दर्शनावरणीय-अन्तराय इन चार घाति कर्मों के क्षय से अनंत केवलज्ञान - केवल दर्शन प्रकट हुआ। भगवान महावीर स्वामी जी को केवलज्ञान प्रकट होने पर देवतागण आए एवं प्रभु के धर्मोपदेश देने हेतु भव्य समवसरण की रचना की। किंतु उस प्रथम देशना में केवल देवी-देवता एवं पशु-पक्षी ही थे। सर्वविरति योग्य न होने से प्रभु ने 1 मुहूर्त बाद वहां से विहार किया और पावापुरी पधारे। मध्यम पावा में यज्ञ करने हेतु इन्द्रभूति गौतम, वायुभूति, अग्निभूति, व्यक्त, सुधर्म, मंडित, मौर्यपुत्र, अंकपित, अचलभ्राता, मेतार्य और प्रभास - ये 11 ब्राह्मण अपने सुविशाल छात्रसंघ के साथ पधारे थे। वाद-विवाद में भगवान् महावीर को परास्त करने गए ये विद्वान प्रभु से प्रतिबोधित होकर उनके शिष्य बन गए थे। ___अतः वैशाख शुक्ला 11 के दिन प्रभु महावीर ने तीर्थ की स्थापना की। साधु-साध्वी-श्रावक-श्राविका यह चतुर्विध संघ रूपी तीर्थ को प्रभु ने सर्वविरति धर्म एवं देशविरति धर्म का सद्बोध दिया। गौतम स्वामी, सुधर्म स्वामी जैसे साधु, चंदनबाला - मृगावती जैसी साध्वियाँ, आनंद-कामदेव-शंख जैसे महावीर पाट परम्परा
SR No.002464
Book TitleMahavir Pat Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChidanandvijay
PublisherVijayvallabh Sadhna Kendra
Publication Year2016
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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