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को और माता त्रिशला को 3 बार प्रदक्षिणा कर नमस्कार किया। शिशु का एक प्रतिबिंब बनाकर माता के पास रखा एवं अवस्वापिनी निद्रा में माता को सुलाकर बालक को मेरु पर्वत पर ले गए जहाँ शुद्ध जल से प्रभु का अभिषेक किया। ___ 'अनेकों इन्द्रों द्वारा एक साथ में की जाती हुई अभिषेक धाराओं को यह नन्हा सा बालक किस प्रकार सहन करेगा' - इसकी आशंका इन्द्र के अंतर्मानस में जगी। बालक अवधिज्ञान का धनी था। अवधिज्ञान से जब शिशु ने इन्द्र की ऐसी शंका को जाना, तब शिशु ने पैर के एक अंगूठे से मेरु पर्वत को प्रकम्पित कर दिया। शिशु का दिव्य शारीरिक बल एवं दृढ़ आत्मबल जानकर इन्द्र ने शंका के लिए प्रभु से क्षमा माँगी। जन्माभिषेक का महोत्सव सम्पन्न कर इन्द्र ने बालक को पुनः माता के पास लाकर सुला दिया।
राजा सिद्धार्थ ने राज्यस्तर पर बालक का जन्म महोत्सव मनाया। बारहवें दिन नाम संस्कार किया गया। माता-पिता ने फरमाया कि जब से यह बालक गर्भ में आया, तभी से धनधान्य-हिरण्य-सुवर्ण-यश-कीर्ति आदि वृद्धि को प्राप्त हो रहे हैं अतः इस बालक का नाम 'वर्द्धमान' रखा जाता है।
बाल्यकाल से ही बालक वर्द्धमान साहसी, पराक्रमी एवं वीर थे। सभी मानव एवं देवतागण उसे 'महावीर' बुलाने लगे।
- दीक्षा : ____ युवावस्था से ही महावीर का हृदय संयम पथ पर अग्रसर होने का था किंतु माता-पिता के अति-आग्रह के कारण वसंतपुर के महासामंत समरवीर की पुत्री यशोदा के साथ पाणिग्रहण करना हुआ। उनकी पुत्री का नाम प्रियदर्शना पड़ा। जब महावीर 28 वर्ष के थे, तब उनके माता-पिता का स्वर्गवास हो गया। वे दीक्षा ग्रहण कर आत्मकल्याण के मार्ग पर अग्रसर होना चाहते थे लेकिन अग्रज नंदीवर्धन ने कहा कि अभी हम माता-पिता के देहावसान के दुख को विस्मृत नहीं कर सके और ऐसे समय में तुम्हारी प्रव्रज्या बहुत दुखदायी होगी। अतः दो वर्ष बाद दीक्षा लेना। भगवान् महावीर ने भाई की बात स्वीकार की किंतु विरक्त भाव से ही रहे। रात्रि भोजन त्याग, पूर्ण ब्रह्मचर्य, प्रासुक आहार, भूमि शयन आदि करते थे। ___ जब वे 30 वर्ष के हुए तब लोकान्तिक देवों ने आकर प्रभु महावीर को धर्मतीर्थ का प्रवर्तन करने की विनती की। प्रभु वीर ने सतत् 1 वर्ष तक दान दिया एवं मार्गशीर्ष वदी 10 को पंचमुष्टि
महावीर पाट परम्परा