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________________ गुजरात के अनेकों प्रांतों में परमार क्षत्रिय बसे हैं जो काल के प्रभाव से जिनधर्म से विमुख हो गए। आचार्य इन्द्रदिन्न सूरीश्वर जी ने अनेकों वर्षों तक इन क्षेत्रों में रहकर जिनवाणी की अमोघ गर्जना की। पेडों के नीचे, चौराहों में - जहाँ पर भी संभव हुआ, वहाँ उन्हें अहिंसा धर्म के उपदेश से विकृति से संस्कृति में लाए एवं तदुपरान्त 12 वर्षों तक इस क्षेत्र में घर-घर, गली-गली, गाँव-गाँव घूमकर जिनधर्म से जोड़ा। उनके पुरुषार्थ के परिणाम स्वरूप इस क्षेत्र में 1,00,000 परमार क्षत्रिय भाई-बहन (जिनमें पटेल भी सम्मिलित है) नए जैन बने। वे स्वयं परमारक्षत्रिय थे। अतः किसे किस प्रकार से प्रतिबोधित किया जाए, इसका ज्ञान उन्हें सहज था। उनकी प्रेरणा से 60 गाँवों में नए जिनमंदिर बने और उतने ही गाँवों में जैन धार्मिक पाठशालाएं खोली गई। पावागढ़ तीर्थ का उद्धार और वहाँ जैन कन्या छात्रालय की स्थापना की प्रेरणा इस कार्य का प्रमुख चरण प्रमाणित हुआ। व्यसनमुक्ति, शाकाहार के उन्होंने विशेष आंदोलन चलाए। उनके परमारक्षत्रियोद्धार के स्वर्णसंकल्पी कार्य में कई परिषद, कई विघ्न आए किंतु उन्होंने समभाव से सब सहज किया। . उनकी पावन प्रेरणा से परमार क्षत्रियों की जिनधर्म - दीक्षा का क्रम अस्खलित रूप से बढ़ा। आचार्य रत्नाकर सूरि जी, आचार्य जगच्चन्द्र सूरि जी, आचार्य वीरेन्द्र सूरि जी, आचार्य अरुणप्रभ सूरि जी आदि अनेकानेक शासनप्रभावक मुनि भी उनके परमारक्षत्रियोद्धार का परिणाम रहा। उन्होंने 120 से अधिक परमार-क्षत्रिय भाई-बहनों को जिनशासन में दीक्षित किया। बोडेली और छोटा उदयपुर (गुजरात) का क्षेत्र उनकी कृपादृष्टि का विशेष पात्र बना। इसी कारण से वे ‘परमारक्षत्रियोद्धारक' के अलंकार से सुविख्यात हुए। उनकी अद्भुत धर्मक्रांति 20वीं शताब्दी के इतिहास में स्वर्णाक्षरों से अंकित है। प्रतिष्ठित जिनप्रतिमाएं : आचार्य विजय इन्द्रदिन्न सूरीश्वर जी म. ने स्थान-स्थान पर संघ की आवश्यकता अनुसार भविष्योन्मुखी बन कई जिनमंदिरों की अंजनश्लाका प्रतिष्ठाएं करवाईं - - गुजरात में पावागढ़, बड़ौदा, मासररोड, खोड़सल, भमरिया, डूमा, शांतलावाड़ी, धरोलिया - महाराष्ट्र में अकोला, मुंबई - राजस्थान में बीकानेर, जजो, लूणकरणसर, नागौर, जयपुर, बेड़ा महावीर पाट परम्परा 287
SR No.002464
Book TitleMahavir Pat Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChidanandvijay
PublisherVijayvallabh Sadhna Kendra
Publication Year2016
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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