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आचार्य विजय इन्द्रदिन्न सूरीश्वर जी ने विविध रूपों से बृहद् शासन सेवा की। उनकी निश्रा में अनेक छ:री पालित संघ आयोजित हुए -
• बटाला से कांगड़ा जी तीर्थ • आगरा से शौरीपुर तीर्थ - बोडेली से लक्ष्मणी तीर्थ
• डीग्रस से भद्रावती तीर्थ • सरधना से हस्तिनापुर तीर्थ
• दिल्ली से हस्तिनापुर तीर्थ • बड़ौदा से कावी तीर्थ
• लोनार से अंतरिक्ष पार्श्वनाथ तीर्थ • बाडमेर से नाकोड़ा तीर्थ
• नागौर से फलवृद्धि पार्श्वनाथ तीर्थ उन्होंने बीकानेर, हिंगणघाट, थाणा, लाठारा, हस्तिनापुर, लुधियाना, कांगड़ा आदि स्थलों पर उपधान तप की भी आराधना कराई।
उनकी प्रेरणा से लुधियाना (पंजाब) में साधर्मिक श्रावक-श्राविकाओं के लिए 750 घरों की आवासीय कॉलोनी - 'विजय इन्द्र नगर' का निर्माण हुआ। इसी प्रकार जयपुर में 'विजय समुद्र इन्द्र साधर्मिक कोष' की स्थापना हुई।
भगवान् महावीर स्वामी जी का 2600 वां जन्मकल्याणक महोत्सव अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर देश की राजधानी - दिल्ली में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी के मुख्य आतिथ्य में गुरुदेव की निश्रा में सम्पन्न हुआ। दिल्ली में गुरु समुद्र की भावना अनुरूप एवं साध्वी मृगावती श्री जी के अदम्य परिश्रम से निर्मित श्री विजय वल्लभ स्मारक की ऐतिहासिक प्रतिष्ठा भी आचार्य विजय इन्द्रदिन्न सूरि आदि सुविशाल श्रमण-श्रमणी वृंद की पावन निश्रा में सम्पन्न हुई थी।
आचार्य विजय इन्द्रदिन्न सूरीश्वर जी अपने निरतिचार संयम के लिए सुविख्यात रहे। अपनी क्रिया के लिए वे सदा समयबद्ध थे। दो-दो बायपास सर्जरी होने पर भी वे वर्षीतप और वर्धमान तप की ओलियो की आराधना करते रहे। इसी कारण वे जनसामान्य में 'चारित्र चूड़ामणि' के अलंकरण से विख्यात हुए। अनुश्रुति है कि पावागढ़ की पुण्यधरा पर तपागच्छ अधिष्ठायक श्री माणिभद्र देव के प्रत्यक्ष दर्शन उन्हें हुए थे। परमार - क्षत्रियोद्धार :
महावीर पाट परम्परा
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