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________________ 1755 का चातुर्मास पाटण में किया। क्रिया की उग्रता से उनका देह कृश हो चुका था, पाँव से चलने की शक्ति भी नहीं रही। अतः तब वे अणहिलपुर पाटण में ही रहे। राजनगर के सेठ सोकर शाह के पुत्र सुखन्द शाह ने सत्य विजय के दर्शन किए, ज्ञानपूजा की, तपस्या के पच्चक्खाण लिए। वि.सं. 1756 के पौष मास में सत्य विजय जी अत्यंत बीमार हो गए। पाँच दिवस की बीमारी को सहते-सहते 82 वर्ष की आयु में पौष सुदि 12 वि.सं. 1756 शनिवार के दिन सिद्धियोग में अनशन स्वीकार कर समाधिपूर्वक काल-धर्म को प्राप्त हुए। उनके जैसे निष्परिग्रही, संयमशिरोमणि, चारित्रपालक गुरु के कालधर्म से संवेगी साधुवर्ग में नेतृत्व शून्यता हो गई जिसकी, परिपूर्ति सत्य विजय जी के शिष्य कर्पूर विजय के रूप में हुई। - C . समकालीन प्रभावक गुरुदेव . महोपाध्याय यशोविजय जी : जैन-धर्म दर्शन के तत्त्व-महोदधि, परम प्रज्ञा एवं त्वरित गामिनी लेखिनी के द्वारा अध्यात्म के साहित्य जगत् की महती प्रभावना करने वाले महोपाध्याय यशोविजय जी अत्यंत प्रसिद्ध हैं। उनका जन्म वि.सं. 1665 में हुआ। उनके पिता का नाम नारायण और माता का नाम सौभाग्यदेवी था। उनकी माँ का नियम था कि गुरुमुख से प्रतिदिन भक्तामर आदि श्रवण करके ही अन्न-जल ग्रहण करूंगी। अपने इस पुत्र को भी वह प्रतिदिन साथ लेकर जाती थी। एक दिन अत्यन्त वर्षा के कारण माँ उपाश्रय नहीं जा सकी। माँ को भूखा-प्यासा देख बालक ने कारण पूछा। बालक जश ने कहा अगर मैं भक्तामर सुना दूँ तो? माँ ने कहा कोई भी भक्तामर सुनाए, तो ही अन्न-जल ग्रहण करूँगी। केवल 5 वर्ष का बालक जश, जिसे रोज सुनने मात्र से भक्तामर याद हो गया, उसने वैसा ही शुद्ध भक्तामर माँ को सुना दिया। तीन-चार दिन तब बारिश चलती रही। जश माता को भक्तामर सुनाने लगा। गुरु नयविजय जी को प्रतीत हुआ कि बहन का तो तेला ही हो गया होगा क्योंकि वो नियम में अडिग हैं। जब चौथे दिन वह उपाश्रय आई और प्रसन्नचित्त से पुत्र की स्मरणशक्ति की बात नयविजय जी को बताई, तो बालक जश की हस्तरेखा देकर गुरु को आभास हो गया कि यह बालक श्रुत साहित्य की अपूर्व प्रभावना करेगा। माँ ने अपने पुत्र को गुरु चरणों में समर्पित कर दिया। दीक्षित होकर महावीर पाट परम्परा 238
SR No.002464
Book TitleMahavir Pat Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChidanandvijay
PublisherVijayvallabh Sadhna Kendra
Publication Year2016
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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