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________________ का संचालन किया। सत्य विजय जी दीक्षा पर्याय, अनुभव एवं आचार श्रेष्ठता में आचार्य विजय प्रभ सूरि जी से बड़े थे। प्रभ सूरि जी कब डेरे धारी हो गये, यति परम्परा में सम्मिश्रित हो गए, इसका पता नहीं। किन्तु तभी से इस परम्परा का सर्जन हुआ जहाँ शुद्ध चारित्रवान् संवेगी साधुओं को यतिओं की आज्ञा में रहना पड़ता था। प्रभ सूरि जी से तपागच्छ की 'श्रीपूज्य-यति' परम्परा की शाखा निकली जबकि सत्य विजय से संवेगी शाखा के रूप में मूल परम्परा आगे बढ़ी। __ अनुश्रुति है कि यति, संवेगी साधुओं को पंन्यास पद से ऊपर बढ़ने नहीं देते थे एवं स्वयं के नाम में 'सूरि' लगा लेते थे। इसी कारण इस कालक्रम के 250 वर्षों तक कोई भी शुद्ध चारित्रवान् साधु आचार्य नहीं बन सका। श्रीपूज प्रभ सूरि जी तो सत्य विजय जी का पूर्ण आदर करते थे। एवं गच्छ संचालन में सहायता लेते थे ताकि यति एवं संवेगी साधुवर्ग की एकता शक्ति से शासन प्रभावना हो किंतु कालांतर की परम्पराओं में इसने मनभेद का रूप ले लिया। इतिहास के अनुसार वि.सं. 1732 से वि.सं. 1735 में विजय प्रभ सूरि जी ने मारवाड़ में विचरण किया। बगड़ी गाँव के उनके चातुर्मास में पं. हेम विजय पं. विमलविजय, पं. उदयविमल, पं. सत्यविजय गणी, प्रताप विजय गणी आदि गीतार्थ मुनि भी थे। अतः यह स्पष्ट है कि उस समय प्रभ सूरि जी और सत्य विजय जी में आपसी सम्बन्ध अच्छे थे किन्तु आगे आई श्रीपूज्य यति परम्परा ने संवेगी साधुओं के ह्रास अनेक प्रयत्न किए किन्तु सत्य विजय जी की संवेगी परंपरा ने उपसर्गों परिषहों को सहन करते हुए सम्यक् साधुता सुरक्षित रखी। यतिवर्ग की चादर भी सफेद थी एवं साधुवर्ग की चादर भी सफेद थी। कौन साधु है, कौन यति है, इसका आकलन एक पल के लिए असंभव सा था! इसी कारण क्रियोद्धार के समय सत्य विजय जी ने आनन्दविमल सूरि जी के पट्टक के आधार से वि.सं. 1711 में शुद्ध संवेगी आचारवान् साधु-साध्वियों के लिए ऊपर के मुख्य वस्त्र चादर का रंग काथे (पान के कत्थे का हल्का रंग) रंग सी केसरी पीली चादर प्रारम्भ की। करीबन 700-800 साधु-साध्वी जी सत्य विजय जी की आज्ञा में रहते थे। कालधर्मः पंन्यास सत्य विजय जी ने वि.सं. 1754 का चातुर्मास अहमदाबाद में किया तथा वि.सं. महावीर पाट परम्परा 237
SR No.002464
Book TitleMahavir Pat Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChidanandvijay
PublisherVijayvallabh Sadhna Kendra
Publication Year2016
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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