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________________ पंडित पद दिया गया। खंभात से विहार कर गुरु के साथ विचरते हुए वे अहमदाबाद पधारे जहाँ फाल्गुन सुदि 7 संवत् 1628 (सन् 1571) का आपश्री जी को उपाध्याय व आचार्य पद से विभूषित किया गया। विजय हीर सूरि जी ने इनका आचार्य पर्याय का नाम-विजय सेन सूरि रखा। मूला सेठ और वीपा पारिख ने पूरा महोत्सव किया। आचार्य विजय हीर सूरि जी म. ने सूरि मंत्र की साधना के दौरान देवता से प्रश्न किया। देवता ने कहा कि अपने पाट पर जयविमल जी (सेन सूरि) को बिठाना। जब हीर विजय सूरि जी बादशाह अकबर के निमंत्रण पर फतेहपुर आए, तो पीछे सेन सूरि जी को गुजरात का दायित्व देकेर आए। सेन सूरि जी के हृदय में अपार गुरु भक्ति थी। जब गुरु ने विहार किया, तब सिरोही तक छोड़ आए एवं 4 साल बाद जब हीर सूरि जी वापिस आए, तब भी सिरोही तक लेने गए। __ संवत् 1646 का चातुर्मास गंधार कर संवत् 1647 को चातुर्मास हीर सूरि जी के साथ ही राधनपुर में किया। अकबर बादशाह ने तब फरमान भेजा कि "गुरुजी! आप कहते थे आप पुनः यहाँ पधारोगे। आपकी अनुकूलता नहीं है तो सेन सूरि महाराज को ही भेज दीजिए। यहाँ भानुचंद्र जी के मुख से उनकी अपार प्रशंसा सुनी है।" साधु मंडली में चिंतन-मनन चालू हुआ। अंततः विजय सेन सूरि जी ने गुर्वाज्ञा से विद्या विजय जी आदि साधुओं के साथ मार्गशीर्ष सुदि 3 को विहार चालू किया व राधनपुर ने पाटण- सिद्ध पुर- सलोतर- मुंडस्थल- आबूसिरोही- राणकपुर- मेड़ता- सांगानेर- रेवाड़ी- सामाना- लुधियाना होकर ज्येष्ठ सुदि 12 वि. सं. 1650 में दिल्ली में प्रवेश किया व बादशाह से मिले। कश्मीरी मोहल्ले में जिनचन्द्र सूरि जी (खरतरगच्छीय) के साथ मिलकर चातुर्मास किया एवं ब्राह्मण और मुस्लिमों को भी प्रतिबोधित किया। विजय सेन सूरि जी में विजय हीर सूरि जी का प्रतिबिंब देख बादशाह हर्षित हुआ। ___ एक जैनाचार्य के समक्ष बादशाह का इतना झुकाव और सत्कार देखकर किसी भट्ट ने बादशाह के कान भरे कि जैन लोग ईश्वर को नहीं मानते, सूर्य को- गंगा को नहीं मानते इत्यादि। राजा को मानसिक कोप हुआ किंतु शान्त रहा। बादशाह ने विजय सेन सूरि जी यह बातें प्रकट की। उत्सूत्र प्ररुपणां भी न हों- राजा क्रोधित भी न हो- भट्ट को भी उत्तर मिल जाए, इस प्रकार की सरस विवेचनपूर्ण शैली में विविध धर्मों के संदर्भ लेकर भी सूरि जी ने जैन सिद्धांत को समझाया। बादशाह अत्यंत प्रसन्न हुआ। बादशाह के आग्रह से विजयसेन सूरि जी ने 2 चातुर्मास लाहौर किए। सेन सूरि जी की प्रेरणा से गाय- बैल- भैंसा- भैंस की हत्या, नाऔलाद महावीर पाट परम्परा 220
SR No.002464
Book TitleMahavir Pat Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChidanandvijay
PublisherVijayvallabh Sadhna Kendra
Publication Year2016
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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