SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 247
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ देखते हुए विचार करते हैं कि उन्हें न्यायशास्त्र एवं ज्योतिष में भी प्रवीण बनाना चाहिए। दक्षिण में देवगिरि (दौलताबाद) इस हेतु से उत्तम था । अतः उन्होंने धर्मसागर जी, राजविमल जी एवं हीरहर्ष जी को पढ़ने के लिए देवगिरि भेजा । दो-तीन साल तीनों मुनिवृंदों ने खूब पढ़ाई की। शिक्षक एवं रहने का सम्पूर्ण खर्चा दौलताबाद के सेठ शाह देवीदास ने किया। विद्याध्ययन कर उन्होंने पुनः गुजरात- मारवाड़ की ओर दान सूरि जी के पास जाने हेतु विहार किया। नाडलाई नगर में गुरु दान सूरि के दर्शन कर मुनि हीरहर्ष जी बहुत आनंदित हुए एवं 108 काव्य की रचना कर गुरु की स्तुति की। दान सूरि जी को अत्यंत प्रसन्नता हुई कि न्यायशास्त्र के कठिन से कठिन ग्रंथ का पूर्ण अभ्यास मुनियों ने किया। संवत् 1607 (सन् 1550 ) में नारदपुरी ( नाडलाई ) मारवाड़ में तीनों मुनियों को पण्डित पद प्रदान किया। अगले ही वर्ष संवत् 1608 में माघ सुदी पंचमी को नेमिनाथ जी के देरासर व वरकाणा पार्श्वनाथ देरासर - नाडोल में तीनों साधुओं को उपाध्याय पद से विभूषित किया। हीरहर्ष जी की योग्यता को देखते हुए विजय दान सूरि जी म. ने हीरहर्ष विजय जी को पौष सुदी पंचमी संवत् 1610 ( सन् 1553) में सिरोही ( मारवाड़) में आचार्य पदवी से अलंकृत कर उनका नाम 'आचार्य विजय हीर सूरि' ( मतांतर से आचार्य हीरविजय सूरि) रखा। हीर सूरि जी अपने गुरु के साथ मेहसाणा, अहमदाबाद होते हुए पाटण में पधारे। वहाँ आचार्य विजय दान सूरि जी ने हीर सूरि जी को अपना पट्टधर घोषित किया। पट्ट - महोत्सव पर वहाँ के सूबेदार शेस्खान के मंत्री भंसाली समर ने अतुल धन खर्च किया। संवत् 1622 (सन् 1565 ) में गुरुदेव के काल कर जाने पर संघ के संवहन का दायित्व हीर सूरि जी ने निभाया। वे विशिष्ट शक्तियों के धनी थे। एक बार मुनि लाभ विजय जी को विषैले सांप ने काटा। उनकी जीवन ज्योति बुझ रही थी किंतु आचार्य हीर सूरि जी ने हाथ फेरा तो विष ऐसे उतरा मानो कुछ हुआ ही न हो। अनेकों बार उन्हें राजद्रोह अथवा झूठे मुकदमों के नाम पर पकड़ने की साजिश हुई किंतु अपने निष्कलंक संयम से वे शासनरक्षा करते रहे । हीर सूरि जी ने अनेक मुस्लिम बादशाहों को प्रतिबोधित किया जिनमें 18 प्रमुख थे 2. जाफरबेग आशीफखान 1. अकबर बादशाह 4. अबुलफजल 5. कासिम खाँ कामली महावीर पाट परम्परा 3. मुल्लाशाह मुहम्मद 6. शाहबादी 213
SR No.002464
Book TitleMahavir Pat Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChidanandvijay
PublisherVijayvallabh Sadhna Kendra
Publication Year2016
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy