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मत निकाला। लुंकामत (स्थानकवासी) से निकल कर विजय ऋषि ने संवत् 1570 में 'बीजा मत' को प्रचलित किया। संवत् 1572 में श्री नागपुरीय तपागच्छ से निकल कर उपाध्याय श्री पार्श्वचंद्र (पार्श्वचंद्र सूरि जी) भिन्न रूप से निकले, जो पायचंद गच्छ (पार्श्वचंद्र गच्छ) के नाम से प्रसिद्ध हुआ। प्रतिष्ठित जिन प्रतिमाएँ :
आचार्य हेमविमल सूरि जी ने अनेकों जिनप्रतिमाओं की अंजनश्लाका-प्रतिष्ठाएं सम्पन्न कराई। उनमें से अनेकों प्रतिमाएं आज भी उपलब्ध होती हैं, जिन पर प्रतिष्ठा के प्रतिमालेख भी उपलब्ध होते हैं। 1) बालावसही, शत्रुजय में प्राप्त आदिनाथ जी की धातु की प्रतिमा (लेखानुसार वैशाख
सुदि 13 गुरुवार, संवत् 1551 में प्रतिष्ठित) चिंतामणि जी का मंदिर, बीकानेर में प्राप्त नमिनाथ जी की प्रतिमा (शिलालेख अनुसार वैशाख सुदि 14, संवत् 1552 में प्रतिष्ठित) संभवनाथ जिनालय, फूलवाली गली, लखनऊ में प्राप्त शांतिनाथ जी की धातु की प्रतिमा (लेखानुसार ज्येष्ठ सुदि 13, संवत् 1552 में प्रतिष्ठित) गोड़ी. पार्श्वनाथ जिनालय, आगरा में प्राप्त सुविधिनाथ जी की धातु की प्रतिमा (लेखानुसार माघ वदि 2, बुधवार संवत् 1554 में प्रतिष्ठित) मुनिसुव्रत जिनालय, भरूच में प्राप्त नमिनाथ जी की धातु प्रतिमा (शिलालेखानुसार वैशाख सुदि 3, शनिवार, संवत् 1555 में प्रतिष्ठित) विमलनाथ जिनालय, सवाई माधोपुर में प्राप्त पार्श्वनाथ जी की धातु की प्रतिमा
(लेखानुसार ज्येष्ठ सुदि 2, संवत् 1556 में प्रतिष्ठित) 7) सुमतिनाथ जिनालय, जयपुर में प्राप्त पार्श्वनाथ जी की धातु प्रतिमा (लेखानुसार ज्येष्ठ
वदि 8 रविवार संवत् 1560 में प्रतिष्ठित) 8) गोड़ी पार्श्वनाथ जिनालय, पायधुनी, मुंबई में प्राप्त मुनिसुव्रत स्वामी जी की प्रतिमा
(लेखानुसार माघ वदि 5 संवत् 1566 में प्रतिष्ठित)
महावीर पाट परम्परा
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