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________________ का व्रत दिया। वहाँ से विहार कर स्तंभन तीर्थ में पैंसठ मण का रूपा का मठ करवाया। तत्पश्चात् बीजापुर में 61 मन जिनपट्ट की प्रतिष्ठा करवाई जिसका कोठारी - श्रीपाल ने लाभ लिया। इस प्रकार धर्म की प्रभावना के अनेक कार्य किए। वि.सं. 1548 में आचार्य हेमविजय सूरि जी ने ईडर के कोठारी सायर श्रीपाल कृत उत्सव में लगभग 500 स्त्री-पुरुषों को दीक्षा दी। इनके सदुपदेश से वि.सं. 1556 में हमीरगढ़ के जिनालय का जीर्णोद्धार हुआ। साहित्य रचना : आचार्य हेमविमल सूरि जी द्वारा रची गई कुछ कृतियां मिलती हैं- पार्श्वजिनस्तवन (32 श्लोक) - वरकाणा पार्श्वनाथ स्तोत्र, भक्तामर स्तोत्र एवं कल्याणमंदिर स्तोत्र की पादपूर्ति रूप 46 श्लोक - तेरह काठियानी सज्झाय (15 कड़ियाँ) - मृगापुत्र सज्झाय या मृगापुत्र चौपाई - सूत्रकृतांग सूत्र पर दीपिका नामक टीका संघ व्यवस्था : हेमविमल सूरि जी का आचरण प्रसिद्ध था। उस समय में व्याप्त शिथिलाचार में उनका व उनके साधु समुदाय का शास्त्रोक्त आचार चर्चित था। क्षमाश्रमण आदि विधि से श्रावक के घर से लाया हुआ आहार वे ग्रहण नहीं करते थे। उन्हें अपने समुदाय में कोई द्रव्यधारी क्रियाभ्रष्ट यति ज्ञात होता, तो उसे गच्छ से निकाल देते थे। उनकी इसी नि:स्पृह वृत्ति को देखकर लुकामत (स्थानकवासी सम्प्रदाय) के ऋषि हाना, ऋषि श्रीपति, ऋषि गणपति आदि अनेक आत्मार्थी लुंकामत का त्याग कर श्री हेमविमल सूरि जी की शरण में आए थे। पूज्य श्री जी के आनंदविमल सूरि जी, दयावर्धन गणि, कुलचर गणि, साधुविजय, हर्षकुल, सौभाग्यहर्ष जी, अनंतहंस जी आदि अनेक शिष्य थे। हेमविमल सूरि जी ने अपने जीवन में 500 मुमुक्षुओं को दीक्षा दी थी। इसी काल में संवत् 1562 में "आजकल शास्त्रोक्त साधु दृष्टिगोचर नहीं होते' इस प्रकार की प्ररूपणा करने वाले कटुक नाम गृहस्थ ने कटुक (कडुआ) महावीर पाट परम्परा 196
SR No.002464
Book TitleMahavir Pat Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChidanandvijay
PublisherVijayvallabh Sadhna Kendra
Publication Year2016
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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