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________________ में पधारे। उस समय गुजरात, मारवाड़, मालवा, सौराष्ट्र आदि प्रदेशों के संघों की उपस्थिति में संपूर्ण गच्छ की व्यवस्था का कार्यभार सौंपा। कुठारी सागर और श्रीपाल श्रावक प्रमुख ने इस विषय में महोत्सव किया। विद्वानों ने उन्हें 'वादिविडम्बन' का भी बिरुद् प्रदान किया था । वि.सं. 1549 में वे खंभात पधारे। चातुर्मास दरम्यान उन्हें एक रात्रि तीर्थयात्रा का स्वप्न आया । स्वप्न अनुसार उन्होंने शत्रुंजय तीर्थ का संघ को निकालने का सदुपदेश दिया । फलस्वरूप चातुर्मास बाद 11 आचार्यों की निश्रा में सिद्धाचल तीर्थ का भव्य छःरी पालित संघ निकला। संवत् 1570 में आचार्य हेमविमल सूरि जी की निश्रा में स्तंभन तीर्थ में विशाल महोत्सव हुआ। इस अवसर पर उन्होंने अपने शिष्य मुनि अमृतमेरु को आचार्य पद प्रदान किया और आनंदविमल नाम प्रदान किया। दानशेखर व मानशेखर मुनियों को गणी पदवी एवं एक विदुषी वडिल साध्वी को महत्तरा पद प्रदान किया। वहाँ से विहार कर वे कपडवंज पधारे। कपडवंज में नगरवासियों ने गुरुनिश्रा में परमात्मभक्ति व गुरुभक्ति के विविध भव्य आयोजन किए। एक चुगलखोर ने बादशाह मुदीफेर को कहा कि - देखो! इन जैनों ने जो महोत्सव किया है, वह महोत्सव आपका होना चाहिए था । यह आपका अपमान है।" यह सुनकर बादशाह ने आवेश में आकर हुकुम दिया कि जैन आचार्य को पकड़ कर लाओ । इतने में हेमविमल सूरि जी विहार करके स्तंभन तीर्थ पहुंच चुके थे। सवारों के द्वारा जब यह ज्ञात हुआ, तो उन्होंने सूरि जी को वहीं पर बंदीखाने में रखा। इससे समूचे संघ में हाहाकार मच गया। बादशाह ने प्रस्ताव रखा कि कपडवंज के श्रावक यदि 12 हजार टका जीर्ण (मुद्रा) देंगे, तो वे आचार्य को छोड़ देंगे । श्रावक असमर्थ थे फिर भी गुरुभक्तिवश उन्होंने लेख लिखकर मुद्रा देने का आश्वासन दिया एवं गुरुदेव को छुड़वा लिया। आचार्य हेमविमल सूरि जी ने आयंबिल की तपस्या प्रारंभ की एवं महाप्रभावक सूरि मंत्र का आराधन चालू किया। देवता प्रकट हुआ एवं कहा कि द्रव्य पीछे मिलेगा, आप चार साधुओं को चंपानेर भेजो। आचार्यश्री ने पं. हर्षकुशल सिंह - हर्षकुशलसंयम आदि को व कवि शुभशील को भेजा जिन्होंने अपने बहुत सुंदर काव्य से बादशाह को खुश किया । बादशाह प्रभावित हुआ, दण्ड माफ किया एवं स्वयं आकर सूरि जी को नमन - वंदन किया। इस प्रकार संघ पर आई विपत्ति के समक्ष खड़े रह आचार्य हेमविमल सूरि जी ने संघ की रक्षा की। संवत् 1572 में उनका चातुर्मास पाटण में हुआ। वहाँ 5 व्यक्तियों को उन्होंने चौथा ब्रह्मचर्य महावीर पाट परम्परा 195
SR No.002464
Book TitleMahavir Pat Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChidanandvijay
PublisherVijayvallabh Sadhna Kendra
Publication Year2016
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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