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वर्तमान में भगवान महावीर स्वामी जी की पाट परम्परा की इतिहास विषयक सामग्री के अनेक स्रोत हैं
- पट्टावलियाँ - ऐतिहासिक महत्त्व की दृष्टि से पट्टावलियों का महत्त्वपूर्ण स्थान है। गुरु पाट परम्परा विषयक अनेक प्राचीन ग्रंथ होते हैं। नंदीसूत्र आगम एवं श्री कल्पसूत्र में प्राप्त स्थविरावलियां काफी प्राचीन हैं। तत्पश्चात्, समय-समय पर अनेकों महर्षियों ने गुरुमाला, गुरुपट्टावली, पट्टावली सारोद्धार, सूरि परम्परा, युगप्रधान पट्टावली, तपागच्छ पट्टावली, खरतरगच्छ पट्टावली आदि अनेकों ग्रंथों की रचना कर हमें उपकृत किया है।
- प्रशस्तियाँ - धातु अथवा पाषाण की प्रतिमाओं के पीछे अथवा आसनों पर अथवा भिन्न पट्ट स्वरूप प्रतिमालेख अथवा शिलालेखों पर निर्माण समय, प्रतिष्ठाचार्य, गुरु परम्परा, लाभार्थी श्रावक परिचय, गच्छ, शासक आदि का विवरण मिलता है जो तात्कालिक जानकारियाँ प्रदान करता है। प्रतिमाजी के विभिन्न नगरों-मंदिरों में जाने पर भी उसका इतिहास सुरक्षित रहता है।
- अन्य - साहित्य के विशाल क्षेत्र में जीवन चरित्र, ऐतिहासिक रास, प्रबन्ध रचना, राजकीय फरमान आदि का भी महत्त्वपूर्ण स्थान है। किंवदंतियाँ या अनुश्रुतियाँ जो श्रुत परम्परा के आधार से पीढ़ी दर पीढ़ी चलती हैं, वे लिखित अथवा मौखिक रूप से भी हो सकता है। उसमें सत्य तथ्य की पुष्टि अनुसंधान का विषय हो सकती है किंतु 'पुरुष विश्वासे, वचन विश्वासे' के आधार पर कई बातों की स्वीकृति की जाती है। - प्रस्तुत पुस्तक के विषय में :
प्रस्तुत पुस्तक में शासनपति भगवान् महावीर स्वामी जी के प्रथम पट्टधर गणधर सुधर्म स्वामी जी से 77वें पट्टधर आचार्य श्रीमद् विजय नित्यानंद सूरीश्वर जी तक का संक्षिप्त जीवन लिपिबद्ध है। समय-समय पर विभिन्न शाखाओं-प्रशाखाओं का उद्भव हुआ जिसके फलस्वरूप अनेक गच्छ, समुदाय, पट्टधर आदि हुए। हमारा किसी से भी कोई द्वेष नहीं है। हमारा उद्देश्य केवल अपनी गुरु पाट परम्परा का वर्णन करना है। गुजराती भाषा में अनेक पट्टावली ग्रंथ प्रकाशित हैं, जिससे हिन्दी भाषी लोगों में हिन्दी भाषा में इस प्रकार की पुस्तक की उत्कंठा थी। ___ अनेक लोग भगवान् महावीर की पाट परम्परा से अनभिज्ञ हैं। जैन धर्म के ऐसे महिमावंत इतिहास से परिचित होना आवश्यक है। जैनत्व जागरण के शंखनाद हेतु आदर्श इतिहास से