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प्रेरणा लेना जरूरी है। गच्छवाद की आलोचना, समुदायममत्व के कारण अन्यों की समीक्षा आदि इस पुस्तक का अंश नहीं है। जैन समाज की भावी पीढ़ी में संस्कार सिंचन की शुभ भावना के उद्देश्य से इस कृति का सर्जन किया गया है।
स्वाध्याय हमारे जीवन का एक अभिन्न अंग होना चाहिए। सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र की प्राप्ति और स्थिरता में स्वाध्याय की अहम भूमिका होती है। इस पुस्तक के स्वाध्याय से ये तीनों रत्न हमारी आत्मा में परिलक्षित हों, ऐसा हमारा प्रयास रहे। सद्गुरुदेवों की सच्चरित्र जीवन झांकी से हमारे हृदय में सुदेव-सुगुरु-सुधर्म के प्रति असीम श्रद्धागुण स्वरूप सम्यग्दर्शन विकसित हो, सद्गुरुदेवों के जीवन संबंधित जानकारी से ज्ञान स्वरूप सम्यग्ज्ञान विकसित हो, सद्गुरुदेवों के चारित्र अनुमोदन से चारित्र मोहनीय कर्म क्षय हो तथा आचरण में सम्यग्चारित्र विकसित हो, इसी शुभ भावना से लेखन किया गया है एवं अध्ययन भी इसी रूप में किया जाए, तो ही हमारी आत्मा का कल्याण होगा। ___ इस पुस्तक के संपादन में हिमांशु जैन 'लिगा', प्रूफ रीडिंग में श्रीमती अनिता वीरेन्द्र जैन एवं प्रकाशन में श्री प्रतीक जी मरडिया का अनुमोदनीय योगदान रहा। इस पुस्तक में कुछ भी जिनाज्ञा विरुद्ध लिखा गया हो अथवा अशुद्ध/अपूर्ण लिख दिया गया हो, उसके लिए सभी से 'मिच्छामि दुक्कड़। यह कृति जनोपयोगी बने, जनग्राह्य बने, यही भावना........
पंन्यास चिदानंद विजय