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गच्छममत्व में आचार्यश्री का विश्वास नहीं था। अन्य गच्छों के भिन्न-भिन्न साधुओं से इनका बहुत प्रेम था। इसी से प्रभावित होकर खरतरगच्छीय आचार्य जिनप्रभ सूरि जी के शिष्य ने 700 नए स्तोत्र रचे और सोमतिलक सूरि जी को समर्पित किए। यह उस समय की अद्वितीय आश्चर्यजनक घटना थी। आचार्य सोमतिलक सूरि जी के श्रावक भक्त-सेठ जगतसिंह एवं उनके पुत्र महण सिंह इतिहास के प्रसिद्ध जैन श्रावक हैं जिन्होंने जंगल में या जेल में, कभी प्रतिक्रमण नहीं छोड़ा, यह सब सूरि जी का ही प्रभाव रहा। अनेकों जैनों को परमात्मा का सच्चा उपासक बनाकर सोमतिलक सूरि जी ने शासन की महती प्रभावना की। । साहित्य रचना :
इसके द्वारा रचित कुछ महत्त्वपूर्ण कृतियां इस प्रकार हैं1) वि.सं. 1387 (ईस्वी सन् 1321) में रचित - सप्ततिशतस्थान प्रकरण 2) 387 गाथायुक्त बृहन्नव्यक्षेत्र-समास सूत्र 3) सोमप्रभ सूरि जी द्वारा रचित 28 यमक स्तुतियों पर टीका (वृत्ति) 4) पृथ्वीधरसाधु-प्रतिष्ठित-जिनस्तोत्र 5) 'श्रीमद्वीर स्तुवेः' इत्यादि कमलबंध स्तवन 6) सिद्धांत स्तव पर अवचूरि 7) चतुर्विशतिजिनस्तवन वृत्ति 8) शजयात्रावर्णन व तीर्थराजस्तुति १) पच्चीस अर्थयुक्त काव्य एवं अनेक स्तोत्र-स्तवन 10) षड्दर्शनसमुच्चय पर 1252 श्लोकप्रमाण लघुवृत्ति
उनकी वर्णनात्मक शैली सुंदर थी। 'शत्रुजययात्रा वृत्तांत' में उन्होंने शत्रुजय (पालीताणा) तीर्थ की यात्रा दरम्यान कितने जिनमंदिर, किस मंदिर का नाम क्या, किस जगह कितनी प्रतिमाएं - इत्यादि बातों का सुंदर विवेचन कर भावपूर्वक स्तवना की है जो उस समय की बातों को स्पष्ट उजागर करता है।
'सत्तरिसयठाण पगरण' (सप्ततिशतस्थान प्रकरण) में तीर्थंकर परमात्मा संबंधी 170 बातों
महावीर पाट परम्परा
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