SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 193
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 48. आचार्य श्रीमद् सोमतिलक सूरीश्वर जी संघ-तिलक सूरि सोमतिलक जी, ज्ञान रूप आकार। गच्छमोहमुक्त मेधाधारक, नित् वंदन बारम्बार॥ आचार्य सोमप्रभ सूरीश्वर जी के अन्य शिष्यों से अधिक दीर्घायु एवं योग्य होने पर सोमतिलक सूरि जी भगवान महावीर की परमोज्ज्वल पाट परम्परा के 48वें पट्टधर बने। वे रूपसंपदा एवं ज्ञान संपदा के धनी थे। कई महत्त्वपूर्ण रचनाओं के वे सर्जक रहे। उन्होंने अपने कई शिष्यों को शासन प्रभावना के लिए तैयार किया था। जन्म एवं दीक्षा : वि.सं. 1355 के माघ महीने में उनका इस पृथ्वीतल पर जन्म हुआ। जन्म से ही वे शारीरिक कांति के साथ बौद्धिक शक्ति के धनी थे। उनका पारिवारिक संबंध प्राग्वाट् (पोरवाल) जाति से था। चौदह वर्ष की आयु में वि.सं. 1369 में उन्होंने दीक्षा ग्रहण की तथा वे तपागच्छीय सोमप्रभ सूरि जी के शिष्य बने। उनकी निश्रा में रहकर वे संयम साधना के शिखर तक पहुँचे। शासन प्रभावना : सोमतिलक सूरि जी अपने संयम में इतनी द्रुतगति से आगे बढ़े कि मात्र 18 वर्ष की आयु में आचार्य सोमप्रभ सूरि जी ने उन्हें महत्त्वपूर्ण - सूरि पद पर प्रतिष्ठित कर दिया। सोमप्रभ सूरि जी की छाया में विकसित हुए बहुप्रतापी सोमतिलक जी की आचार्य पदवी वि.सं. 1373 में हुए। उनके आचार्य पदवी महोत्सव पर जंघराल के संघपति गजराज ने 2.5 लाख टका खर्च किया। इसके कुछ महीने बाद ही आचार्य सोमप्रभ सूरि जी कालधर्म को प्राप्त हुए एवं गच्छ संचालन का संपूर्ण दायित्व इन पर आ गया। उस काल की प्रशस्तियों में इनके रूप लावण्य की प्रशंसा करते हुए अनेक विशेषण दिए हैं। जैसे - चंद्रगच्छे प्रद्योतनाभ, सर्वाभिमत-सुमति, ज्ञानेन्दुकांतिविराजमान, सर्वागावयवसुंदर इत्यादि जिससे इनके शरीर व ज्ञान का तेज ज्ञात होता है। इनका दूसरा नाम विद्यातिलक था। महावीर पाट परम्परा 159
SR No.002464
Book TitleMahavir Pat Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChidanandvijay
PublisherVijayvallabh Sadhna Kendra
Publication Year2016
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy