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जी का कार्तिक वदि अमावस्या के दिन निर्वाण महोत्सव हुआ। उसके अगले दिन-कार्तिक सुदि एकम से वीर संवत् की प्रथा का प्रादुर्भाव हुआ। तदनुसार 15 अक्टूबर 527 B.C. से वीर संवत् चालू हुआ। वीर संवत् और विक्रम संवत् में 470 वर्षों का अंतर हुआ। अखंड भारतवर्ष में प्रयोग किया जाने वाला यह प्राचीनतम संवतों में से एक है। विक्रम संवत् - भगवान् महावीर के निर्वाण के 470 वर्ष बाद विक्रम संवत् चालू हुआ। इतिहास के अनुसार प्रतिष्ठानपुर / उज्जैन के महान सम्राट श्री विक्रमादित्य के राज्याभिषेक अथवा मृत्यु से विक्रम संवत् प्रचलित हुआ। चैत्र सुदि एकम से नया विक्रम संवत् चालू होता है। इस संवत् के आरंभ से पूर्व की घटनाओं का आकलन 'विक्रम पूर्व' संवत् से कर दिया जाता है। विक्रम संवत् चालू होने के 57 वर्ष बाद ईस्वी संवत्
(ईस्वी सन्) का प्रचलन हुआ। 3. . ईस्वी संवत् - वर्तमान में यह सबसे अधिक प्रसिद्ध एवं प्रचलित है एवं सभी इससे
परिचित हैं। ईसा मसीह के जन्म से यह संवत् प्रारंभ हुआ। अंग्रेजी साम्राज्य के विस्तार के साथ यह विश्वभर में प्रसिद्ध हुआ। यद्यपि कई इतिहासज्ञों का इस विषय में मतभेद है किंतु सामान्य मानव में यही प्रसिद्ध है। इस संवत् से पहले की घटनाओं को ईसा पूर्व/ईस्वी पूर्व/B.C. (Before Christ/Before Common Era) के नाम से संबोधित करते हैं। भगवान् महावीर का निर्वाण ईस्वी पूर्व 527 में हुआ यानि उनके निर्वाण के 527 वर्षों बाद यह सन् चालू हुआ। वर्तमान में जो 1 जनवरी से नया वर्ष
मनाया जाता है, वह एक दृष्टि से अंग्रेजी नववर्ष ही होता है। भगवान् महावीर के प्रथम पट्टधर गणधर आचार्य श्री सुधर्म स्वामी जी ने वीर निर्वाण संवत् 1, विक्रम पूर्व 470, ईसा पूर्व 527 में पट्टधर पद का दायित्व ग्रहण किया। भगवान् महावीर के 77वें पट्टधर आचार्य श्री विजय नित्यानंद सूरीश्वर जी ने वीर निर्वाण सवत् 2531, विक्रम संवत् 2061, ईस्वी सन् 2005 में पट्टधर पद के दायित्व का संवहन किया।
इस सुदीर्घावधि की गौरवपूर्ण इतिहास में जिनशासन की धवल यश चन्द्रिका को देदीप्यमान करने वाली पाट परम्परा में अनेकों गुरुदेव हुए जिन्होंने अपने विविध योगबल से जिनधर्म की महती प्रभावना की है। - इतिहास के प्रमुख स्रोतः
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