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श्री भुवनभानु सूरि समुदाय श्री धर्म विजय समुदाय (डहेलावाला) . श्री लब्धि सूरि समुदाय . श्री नीति सूरि समुदाय श्री केसर सूरि समुदाय
श्री सागरानन्द सूरि समुदाय श्री सिद्धि सूरि समुदाय
श्री शांतिचंद्र सूरि समुदाय श्री कलापूर्ण सूरि समुदाय श्री रामचन्द्र सूरि समुदाय श्री वल्लभ सूरि समुदाय
श्री विमलगच्छ । श्री मोहनलाल जी समुदाय . श्री हिमाचल सूरि समुदाय
श्री अमृत सूरि समुदाय प्रस्तुत पुस्तक में प्रथम पट्टधर गणधर सुधर्म स्वामी जी से लेकर तपागच्छ के श्री आत्म वल्लभ समुदाय के वर्तमान नायक, 77वें पट्टधर आचार्य विजय नित्यानंद सूरीश्वर जी तक का जीवन निबद्ध है। लेखन शैली न अति लघु न अति विस्तृत रखी गई है एवं पट्टधर गुरुदेवों के समकालीन रहे विशिष्ट प्रभावक आचार्य आदि का भी परिचयात्मक उल्लेख किया है। ___ श्वेताम्बर परम्परानुसार वीर निर्वाण संवत् 609 (वि.सं.) में शिवभूति से बोटिक मत निकला जो कालान्तर में दिगंबर मत में विकसित हुआ। इसी प्रकार लोकाशाह द्वारा स्थानकवासी मत का विकास हुआ। समय-समय पर अनेकों परंपराएं निकली। - संवत् परिचय
ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में समय के प्रवाह को समझना आवश्यक है। समय की अनुक्रमणिका का व्यवस्थाबद्ध विवेचन करने के लिए सन् अथवा संवत् की सुंदर परम्परा गतिमान है। इतिहास के विषय में आचार्यो, राजाओं, प्रतिष्ठा महोत्सव, शास्त्र रचना, कालधर्म आदि में ठीक-ठीक कालनिर्णय करने की जरूरत रहती है। उसी के अनुसार यह ज्ञात होता है कि क्या किसके बाद हुआ या आज से कितने वर्ष पूर्व हुआ।
जैनागमों में एक वर्ष को एक संवत्सर कहा गया है। वहीं से 'संवत्' शब्द प्रचलित है। जैनग्रंथों में प्रमुख रूप से 3 संवतों का प्रयोग सर्वाधिक होता है। प्रस्तुत पुस्तक में भी उन्हीं का उपयोग हुआ है1. वीर संवत् - वीर संवत् यानि वीर निर्वाण। चौबीसवें तीर्थंकर भगवान श्री महावीर स्वामी
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