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________________ है, किंतु इतिहास साक्षी है कि उससे भी कई अधिक गच्छ व्यवहत हो चुके हैं। कुछ का वर्णन इस प्रकार है1) निर्ग्रन्थ गच्छ : सुधर्म स्वामी जी द्वारा प्रवर्तित यह गच्छ आठवें पट्टधर आर्य महागिरि एवं आर्य सुहस्ती सूरि जी तक चला। 2) कोटिक गच्छ : नवमें पट्टधर आचार्य सुस्थित एवं सुप्रतिबुद्ध सूरि जी द्वारा कोटि बार सूरिमंत्र का जाप करने से यह निर्ग्रन्थ गच्छ का नाम पड़ा। 3) चंद्र गच्छ : पंद्रहवें पट्टधर आचार्य चन्द्र सूरि जी के समय में इसका नाम चन्द्र गच्छ पड़ा। . वनवासी गच्छ : सोलहवें पट्टधर समंतभद्र सूरि जी के वनवासी होने से कोटिक गच्छ का नाम वनवासी गच्छ पड़ा। 5) बड़गच्छ : पैंतीसवें पट्टधर आचार्य उद्योतन सूरि जी द्वारा वटवृक्ष के नीचे शिष्यों को आचार्य पद देने से यह नाम पड़ा। तपागच्छ : चवालीसवें पट्टधर आचार्य जगच्चंद्र सूरि जी की तपस्या से उन्हें 'तपा' बिरुद मिला। अतः उनकी शिष्य संपदा बड़गच्छ के बाद तपागच्छ के नाम से विश्रुत हुई। उपरिलिखित 5 नाम तपागच्छ के जनक हैं। इसके उपरांत भी अनेकों गच्छ हुए। जैसे उपकेश गच्छ, ब्रह्मद्वीप गच्छ, मल्लधारी गच्छ, सांडेरगच्छ, कोरंट गच्छ, चित्रवाल गच्छ, आगमिक गच्छ, राजगच्छ, पूनमिया गच्छ, थारापद्रीय गच्छ, पार्श्वचंद्र गच्छ इत्यादि। किंतु शिष्य परंपरा के अभाव में अथवा मूल पंरपरा में वापिस जुड़ जाने से अनेकों गच्छों का अस्तित्व नहीं रहा। वर्तमान में तपागच्छ, खरतरगच्छ, आंचलगच्छ, पार्श्वचंद्रगच्छ विमल गच्छ आदि वीर शासन को देदीप्यमान कर रहे हैं। तपागच्छ में भी अनेकों समुदाय विद्यमान हैं श्री भक्ति सूरि समुदाय . श्री बुद्धिसागर सूरि समुदाय . श्री नेमि सूरि समुदाय - श्री धर्म सूरि समुदाय 6) XV
SR No.002464
Book TitleMahavir Pat Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChidanandvijay
PublisherVijayvallabh Sadhna Kendra
Publication Year2016
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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