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________________ करने नित्य आते थे। उनकी समझाने की शक्ति गजब थी । आगमों की कठिन से कठिन कोई भी विषय हो, वे सरल रूप से समझाने में सफल रहते थे। खम्भात शहर में देवेन्द्र सूरि जी की व्याख्यान सभा में कम से कम 1800 श्रावक तो सामायिक लेते ही थे। खंभात चौक के कुमारपाल विहार उपाश्रय में धर्मोपदेश देते हुए उन्होंने वैदिक धर्म के 4 वेदों पर आध्यात्मिक प्रवचन दिया। जैने और जैनेत्तर हजारों लोग उनके प्रवचन श्रमण करते थे। महामात्य वस्तुपाल ने सामायिक लेने वाले 1800 श्रावक-श्राविकाओं में मुंहपत्ती की प्रभावना की थी। इस प्रकार इन्होंने शासन के सच्चे श्रावक तैयार किए और चतुर्मुखी दिशा में जिनधर्म का प्रचार- प्रसार कर संयमधर्म में अग्रणीय रहे। साहित्य रचना : देवेन्द्र सूरि जी तात्त्विक ग्रंथों के रचनाकार थे। संस्कृत एवं प्राकृत भाषा के वे अधिकृत विद्वान थे। उन्होंने अधिकांशतः सिद्धांतपरक साहित्य की रचना की। इनके द्वारा लिखित विशाल साहित्य है 1) कर्मग्रंथ : प्राचीन ग्रंथों के आधार पर कर्मग्रंथों जैसी उपयोगी कृतियों में देवेन्द्र सूरि जी ने गूढ़ अनुसंधान कर कर्मों का स्वरूप, उनके परिणाम, गुणस्थानक इत्यादि विषय अच्छी तरह से समझाए हैं। कर्मग्रंथों की संख्या 5 है: प्रथम कर्मग्रंथ द्वितीय कर्मग्रंथ तृतीय कर्मग्रंथ कर्मविपाक में 60 गाथाएँ हैं । कर्मस्तव में 34 गाथाएँ हैं । बंधस्वामित्व में 24 गाथाएँ हैं। षडशीति में 86 गाथाएँ हैं । शतक में 100 गाथाएँ हैं । चतुर्थ कर्मग्रंथ पंचम कर्मग्रंथ इनके और अधिक विवेचन हेतु देवेन्द्र सूरि जी ने इन पर स्वोपज्ञ विवरण भी रचा। 2) धर्मरत्न प्रकरण बृहद वृत्ति 3) श्राद्धदिनकृत्य ( श्रावकदिनकृत्य) सूत्र वृत्ति 4) सिद्धपंचाशिका सूत्र ( वृत्ति सहित ) 5) वंदारू वृत्ति ( श्राद्धप्रतिक्रमण सूत्र टीका) 6) चैत्यवंदन भाष्य 8) पच्चक्खान भाष्य 10) सिरिउसहवद्धमाण आदि महावीर पाट परम्परा 7) गुरुवंदन भाष्य 9) सुदर्शना चरित्र 11) दान, शील, तप, भाव कुलक 145
SR No.002464
Book TitleMahavir Pat Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChidanandvijay
PublisherVijayvallabh Sadhna Kendra
Publication Year2016
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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