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________________ अनेक स्तवन 12) युगप्रधान स्वरूप यंत्र 13) धारणायंत्रे 14) सिद्धदण्डिका इत्यादि। संघ व्यवस्था : ___ 12 वर्ष से अधिक समय तक मालवा में विचर कर वापिस गुजरात आकर आचार्य देवेन्द्र सूरि जी खंभात पहुंचे, तो उनके गुरुभाई विजय चंद्र सूरि जी 12 वर्षों से खंभात में ही रहे हुए थे। अपने साधुओं के आचार में उन्होंने अनेक शिथिलताएं कर दी. जैसे प्रत्येक साधु को वस्त्र धोने की आज्ञा, साध्वी द्वारा लाया आहार साधु द्वारा लेने की छूट, तत्काल उतारा हुआ गर्म जल लेने की आज्ञा इत्यादि। जगच्चंद्र सूरि जी ने देवद्रव्यादि दूषित जिस पौषधशाला में उतरना निषिद्ध किया था, उसी वृद्ध पोशाल (पौषधशाला) में 12 वर्ष तक विजय चंद्र सूरि ठहरे रहे। जिन कामों में गुरु अथवा गच्छनायक की आज्ञा लेनी अवश्य होती है, उन कार्यों को भी विजय चंद्र सूरि जी करने लगे थे। इन सभी बातों का आचार्य देवेन्द्र सूरि जी को पता लग चुका था। इसलिए खंभात पधारने पर भी वे विजयचंद्रसूरि वाली पौषधशाला में उनसे मिलने भी नहीं गए। वे दूसरी पौषध शाला में ठहरे, जो उसकी अपेक्षाकृत छोटी थी। इस प्रकार जगच्चंद्र सूरि जी का शिष्य परिवार खंभात में होते हुए भिन्न-भिन्न उपाश्रयों में ठहरा। विजय चंद्र सूरि जी का शिष्य परिवार वृद्धपौशालिक शाखा के नाम से विश्रुत हुआ एवं देवेन्द्र सूरि जी का शिष्य परिवार लघुपौशालिक शाखा के नाम से प्रसिद्ध हुआ जिससे तपागच्छ की मूल शाखा आगे बढ़ी। देवेन्द्र सूरि जी का शांतरसमयी वात्सल्यपूर्ण वाणी के धर्मोपदेश ये अंचलगच्छ के 44वें पट्टधर आचार्य महेन्द्रसिंह सूरि जी ने वि.सं. 1307 के लगभग थराद में क्रियोद्धार कर शुद्धमार्ग स्वीकार किया। आचार्य जगच्चंद्र सूरि जी ने जिस आगमसम्मत आचार का उद्घोष अपने संघ में किया, उसी का अनुसरण देवेन्द्र सूरि जी ने किया। उनके साधु चारित्र में श्रेष्ठ माने जाते थे। देवेन्द्र सूरि जी के आचार सम्पन्न प्रमुख शिष्यों में आचार्य विद्यानंद सूरि जी एवं उपाध्याय धर्मकीर्ति का नाम चर्चित था। देवेन्द्र सूरि जी के कालधर्म के 13 दिनों में ही विद्यानंद सूरि जी का भी कालधर्म हो गया। किन्हीं समान गौत्रीय आचार्य ने उपाध्याय धर्मकीर्ति को आचार्य पद प्रदान कर नाम 'धर्मघोष सूरि' रखा एवं वे देवेन्द्र सूरि जी के योग्य पट्टधर बने। महावीर पाट परम्परा 146
SR No.002464
Book TitleMahavir Pat Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChidanandvijay
PublisherVijayvallabh Sadhna Kendra
Publication Year2016
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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