SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 171
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्राकृत रचना है। वि.सं. 1241 में पाटण में गुर्जरनरेश कुमारपाल के प्रीतिपात्र कविचक्रवर्ती सिद्धपाल की वसति में रहकर यह ग्रंथ रचा गया। परमार्हत् राजा कुमारपाल जैन परम्परा के इतिहास में अत्यंत प्रसिद्ध हैं। कलिकालसर्वज्ञ आचार्य हेमचंद्र सूरि जी के शिष्य आचार्य महेन्द्र सूरि, पं. वर्धमान गणि. पं. गुणचंद्र गणि इत्यादि ने इस ग्रंथ का श्रवण किया एवं अनुमोदन किया। राजा कुमारपाल के निधन के 12 वर्षों बाद इस ग्रंथ की रचना हुई। हेमचन्द्राचार्य जी द्वारा कुमारपाल राजा को दी गई विविध शिक्षाओं का वर्णन तथा रूढ़ कथाएं इस ग्रंथ में हैं। सेठ नेमिनाग मोढ़ के पुत्र अभयकुमार, पत्नी पद्मा, पुत्र हरिश्चन्द्र, पुत्री देवी इत्यादि ने इस अमूल्य ग्रंथ की प्रतियां लिखवाई। 3) श्रृंगार वैराग्य तरंगिनी - इसमें 46 श्लोक हैं। श्रृंगार के दूषण बताकर वैराग्य को पुष्ट करने वाली यह कृति वैराग्यरसप्रधान है। सिन्दूरप्रकर (सूक्तमुक्तावली) - यह सोमप्रभ सूरि जी की संस्कृत भाषा में लघु रचना है। इस कृति में अहिंसा आदि 20 विषयों पर सरल, सुबोध व हृदयंगम 100 श्लोक / सुभाषित हैं। अतएव, इसका दूसरा नाम 'सोमशतक' भी है। जीवनोपयोगी होने से जैन-अजैन भी इसे मान्य करते थे। ऐसा माना जाता है कि इस प्रकरण की 20 विषयों की भिन्न-भिन्न दृष्टिकोण से आराधना करने के कारण दिगंबर जैनों में बीसपंथी और तेरापंथी का भेद पड़ा। इस ग्रंथ के अनेक श्लोक 'कुमारपाल प्रतिबोध' के कुछ श्लोकों से मेल खाते हैं। इस कृति का रचनाकाल वि.सं. 1250 माना गया है। साहित्य जगत् में यह ग्रंथ अत्यंत प्रसिद्ध हुआ, जिस पर खरतरगच्छीय आचार्य चारित्रवर्धन सूरि जी ने तथा नागोरी तपागच्छ के आचार्य हर्षकीर्ति सूरि जी ने टीकाएं रची एवं दिगंबर विद्वान् पं. बनारसीदास जी ने भी हिन्दी पद्यानुवाद किया। 5) शतार्थ काव्य (कल्याणसार) - सोमप्रभ सूरि जी की यह कृति उनके बुद्धिकौशल का परिचायक है। उन्होंने एक श्लोक की रचना कर उसके 100 अर्थ घटित किए। जैन परम्परा के इतिहास में इससे भी पूर्व अनेकार्थ साहित्य रचा गया थाआचार्य बप्पभट्टी सूरि जी ने 'तत्तासीअली' अष्टशतार्थी – 108 अर्थवाला काव्य बनाया। कवि श्रीपाल ने 'भूभारोद्धरणो.' आदि पदवाला 100 अर्थवाला पद्य बनाया। पं. हर्षकुल महावीर पाट परम्परा 137
SR No.002464
Book TitleMahavir Pat Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChidanandvijay
PublisherVijayvallabh Sadhna Kendra
Publication Year2016
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy