SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 156
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (तत्पश्चात् नेमिचंद्र सूरि) की इस ग्रंथ लेखन में गुरुभाई पं. गुणाकर व पं. पार्श्वदेव ने भी सहायता की। वि.सं. 1129 में इसकी रचना हुई। 2) आत्मबोध कुलक - यह 22 गाथाओं की लघु रचना है। इसमें आत्मा से संबंधित विविध रूपों में उपदेश दिया गया है। इस कृति का दूसरा नाम - धर्मोपदेश कुलक भी कहा गया है। रयणचूड़-तिलयसुंदरीकहा - देवेन्द्र विजय गणी ने प्राकृत गद्य व पद्य रूप में इस ग्रंथ की रचना की। इस कृति का कथानक गणधर गौतम ने अपने मुख से सम्राट श्रेणिक को सुनाया था। रत्नचूड़ इस कथानक का मुख्य पात्र था। यह काव्य गुणों से मंडित एवं शिक्षात्मक सूक्तियों से परिपूर्ण रचना है। प्रद्युम्न सूरि के प्रशिष्य पंन्यास यशोदेवगणी ने इस 3081 श्लोक प्रमाण ग्रंथ की प्रथम प्रति लिखी। महावीर चरियं - वि.सं. 1141 में राजा कर्णदेव के अणहिल्लपुर पाटण में श्रेष्ठी दोहिड़ी की वसति (बस्ती) में रहकर नेमिचंद्र सूरि जी ने 3000 प्राकृत पद्य प्रमाण इस ग्रंथ की रचना की। इसमें भगवान् महावीर के पूर्वभवों का व कल्याणकों का विशद वर्णन है। यह आचार्य विजय नेमिचंद्र सूरि जी की अंतिम रचना मानी जाती है। 5) प्रवचन सारोद्धार - जैन आगमों में से अत्यंत उपयोगी प्राकृत गाथाओं का संग्रह रूप किया। इसके ऊपर अनेक जैनाचार्यों ने परिश्रम कर इसके उपयोग को बढ़ाया है। नेमिचंद्र सूरि जी का मौलिक संकलन प्राप्त होता है। उत्तराध्ययन सूत्र की सुखबोध वृत्ति - वि.सं. 1129 में अणहिल्लपुर पाटण में अपने पट्टधर व गुरुभ्राता - मुनिचंद्र जी की प्रेरणा से दोहड़ श्रेष्ठी की बस्ती (वसति) में रहकर आगम उत्तराध्ययन सूत्र पर इस लघु टीका की रचना की। टीका रचना का मुख्य आधार वादिवेताल शांति सूरि जी की 'शिष्यहिता' टीका रही। इस रचना का नाम सुखबोधा वृत्ति है। संक्षेप रुचि के पाठकों के लिए मतान्तरों से मुक्त सरल-स्पष्ट-सरस शैली में भाव प्रधान रूप में रचा गया यह ग्रंथ 'सुखबोधा' नाम को सार्थक करता है व आज भी उपयोगी है। इसमें 12,000 (14,000) पद्य हैं तथा यह 125 प्राकृत कथाओं से परिपूर्ण है। इस टीका की विशिष्टताओं से पाश्चात्य विद्वान शारपेन्टियर, डॉ. हर्मन जेकोबी आदि भी बहुत प्रभावित हुए हैं। लेजे मेयर ने इसका सन् 1909 में अंग्रेजी अनुवाद भी किया। पाश्चात्य विद्वान ल्यूमेन महावीर पाट परम्परा 122
SR No.002464
Book TitleMahavir Pat Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChidanandvijay
PublisherVijayvallabh Sadhna Kendra
Publication Year2016
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy