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________________ एक बार रात को राजसभा से लौटते हुए पुरोहित हरिभद्र जैन उपाश्रय के पास से गुजरे। उपाश्रय में साध्वी संघ की प्रवर्तिनी याकिनी महत्तरा गाथा का जाप कर रही थी चक्कि दुगं हरिपणगं पणगं चक्कीण केसवो चक्की। केसव चक्की केसव, दुचक्की केसी य चक्कीय॥" श्लोक की आवाज हरिभद्र के कानों से टकराई। उन्होंने बार-बार यह गाथा सुनी, बुद्धि को पूरी तरह से झकझोर दिया किंतु फिर भी स्वयं को सर्वश्रेष्ठ मानने वाला हरिभद्र इसका अर्थ समझ नहीं पाया। हरिभद्र के अहंकार पर यह पहली करारी चोट थी। अर्थ जानने की तीव्र जिज्ञासा उन्हें उपाश्रय के भीतर ले गई। उपाश्रय के भीतर प्रवेश द्वार पर खड़े अभिमानी हरिभद्र ने वक्र भाषा में प्रश्न किया - इस स्थान पर चकचकाहट क्यों हो रही है? अर्थहीन पद्य का पुरावर्तन क्यों किया जा रहा है?" साध्वी याकिनी महत्तश धीर-गंभीर एवं विदुषी साध्वी थी। उन्होंने मीठे शब्दों में कहा - "नूतनं लिप्तं चिगचिगायते (नया लिपा हुआ आंगन चकचकाहट करता है) यह शास्त्रीय पाठ है। गुरु के बिना इसे समझा नहीं जा सकता।" हरिभद्र के अति-आग्रह पर साध्वी याकिनी महत्तराजी ने उन्हें निकट उपाश्रय में विद्यमान आचार्य जिनभद्र (जिनभट्ट) सूरि जी से इसका अर्थ जानने का निर्देश दिया। प्रातः काल होते ही वह आचार्यश्री के पास पहुँचा। उसे सकारात्मक ऊर्जा और सात्विक प्रसन्नता हुई। झुककर नमन किया और जिज्ञासा रखी। आ. जिनभद्र सूरि जी ने कहा कि पूर्वापर संदर्भ सहित सिद्धांतों को समझने के लिए मुनि जीवन आवश्यक है। जिनभद्र सूरि जी को हरिभद्र की योग्यता एवं उज्ज्वल भविष्य का आभास हो चुका था। हरिभद्र में श्लोकार्थ जानने की तीव्र जिज्ञासा थी। वे मुनि बनने को तैयार हो गए। आ. जिनभट्ट ने हरिभद्र को मुनि दीक्षा प्रदान की, गहन अध्ययन कराया, श्लोकार्थ समझाया एवं उनके वैराग्य को ज्ञानगर्भित वैराग्य बनाया। गुरु ने उनको सर्वतोमुखी योग्यता के आधार पर आचार्य पद पर नियुक्त किया। आ. हरिभद्र सूरि जी के हंस एवं परमहंस नाम के 2 शिष्य थे। उन्होंने उन दोनों को प्रमाण शास्त्र का विशेष प्रशिक्षण दिया। दोनों शिष्यों ने बौद्ध प्रमाणशास्त्र पढ़ने की इच्छा प्रकट की लेकिन हरिभद्र सूरि जी को अनिष्ट घटना का आभास हुआ किंतु फिर भी दोनों शिष्य उनकी आज्ञा की अवहेलना कर वेश बदलकर बौद्धपीठ में प्रविष्ट हुए एवं अध्ययन चालू किया किंतु महावीर पाट परम्परा 102
SR No.002464
Book TitleMahavir Pat Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChidanandvijay
PublisherVijayvallabh Sadhna Kendra
Publication Year2016
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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