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________________ 2) से यह चूर्णि अधिक महत्त्वपूर्ण है। इसमें माथुरी आगम वाचना का इतिहास है एवं भगवान् महावीर निर्वाणोत्तरवर्ती आचार्यों के क्रमबद्ध इतिहास को जानने के लिए भी इसमें महत्त्वपूर्ण सामग्री है। अनुयोगद्वार सूत्र चूर्णि - इसमें उद्यान, शिविका आदि शब्दों की व्याख्या है। जैन शास्त्र सम्मत आत्मांगुल, उत्सेधांगुल, प्रमाणांगुल, सप्तस्वर, नवरस इत्यादि विषयों को समझने के लिए विशेष उपयोगी है। 3) निशीथ सूत्र चूर्ण इस चूर्णि की रचना मूल सूत्र, निर्युक्ति एवं भाष्य गाथाओं के आधार पर हुई। ग्रंथ के 20 उद्देशक हैं। इसमें जैन श्रमण आचार के विधि निषेधों की विस्तार से परिचर्चा और उत्सर्ग मार्ग तथा अपवाद मार्ग का पर्याप्त वर्णन है। ग्रंथ रचना में संस्कृत, प्राकृत उभय भाषा का मिश्रण है। - आचारांग सूत्र पर एवं सूत्रकृतांग सूत्र पर प्राप्त चूर्णियों के लेखकों का नाम उपलब्ध नहीं . है। संभव है कि ये भी जिनदास महत्तर जी की रचनाएं थीं। उनकी मौलिकता एवं चिंतन की उच्चता के कारण उनका साहित्य लोकोपयोगी बना। नंदीसूत्र चूर्णि में उन्होंने अपना नामोल्लेख बड़े अलग ढंग से किया है। वे लिखते हैं “णि रेणगमत्तणहसदाजि, कया ॥ पसुपति - संख - गजठितां.. अर्थात् णि (1), रे (2), ण (3), ग (4), म ( 5 ), त ( 6 ), ण (7), ह (8), स (9), नंदीसूत्र चूर्णि के रचनाकार बनते है । दा (10), जि (11) इन 11 अटपटा अक्षरों को जोड़ने से आगे वे शब्दों के क्रम को स्पष्ट करते कहते हैं। पहले पशुपति 7- ण), गज (यानि 10 - दा) आदि । इस प्रकार उनका नाम प्रकार की रहस्यमयी शैली उन्होंने निशीथचूर्णि में लिखी है महावीर पाट परम्परा " (यानि 11 - जि ), फिर शंख (यानि जिणदासगणिमहत्तेरण बनता है। इसी - “ति चउ पण अट्ठमवग्गा तिपण ति तिग अक्खरा व तेसि", यानि च वर्ग के तृतीय अक्षर (ज) पर अ वर्ग की तृतीय मात्र (इ), ट वर्ग का पंचम अक्षर (ण), त वर्ग का तृतीय अक्षर (द) पर आ की मात्रा एवं अष्टम वर्ग का तृतीय अक्षर ( स ) । इस प्रकार उनका नाम 'जिनदास' बनता है। नंदी चूर्णि की रचना वि.सं. 733 में हुई थी । अतः ये विक्रम की आठवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध के निष्णात् विद्वान थे। 100
SR No.002464
Book TitleMahavir Pat Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChidanandvijay
PublisherVijayvallabh Sadhna Kendra
Publication Year2016
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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