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23. आचार्य श्रीमद देवानन्द सूरीश्वर जी
सुदेव-सुगुरु-सुधर्म समर्पित, शास्त्रार्थ कुशल व्यवहार।
आनंदलीन गुरु देवानंद जी, नित् वंदन बारम्बार॥ आचार्य जयदेव सूरीश्वर जी के पट्ट पर हुए प.पू.आ. देवानंद सूरि जी ने शासन प्रभावना के अनेक कार्य किए एवं महावीर स्वामी के 23वें सुयोग्य पट्टधर सिद्ध हुए। ___ इन्होंने प्रभास पाटण (देवकीपट्टन) में श्रीसंघ के आग्रह से पुरुषादानीय श्री पार्श्वनाथ जी के जिनमंदिर की विधिवत् प्रतिष्ठा कराई। कच्छ-सुथरी में शिवधर्मोपासक शैवों को शास्त्रार्थ में पराजित कर जैनधर्म के जयनाद का उद्घोष कराया व जिनमंदिर की प्रतिष्ठा कराई।
इन सुअवसरों पर उन्होंने अनेकों क्षत्रियों को जैन बनाया। कई देवी-देवों की उन्हें सहायता रही।
इनके जीवनकाल में अनेक महत्त्वपूर्ण प्रसंग हुए1) मथुरा एवं वल्लभी में चौथी आगम वाचना। यह वाचना आगमों के पाठों को शुद्ध और
अर्थों को स्पष्ट करने में सहयोगी रही। वि.सं. 375 में वल्लभी नगरी का भंग। गजनी तुर्कों ने आक्रमण किया जिसके कारण अमूल्य प्रतिमाएं भीनमाल आदि में लानी पड़ी। वादिवेताल शांति सूरि जी ने संघ की
रक्षा की। 3) वि.सं. 412 में कतिपय साधु-साध्वियों में चैत्यस्थिति का शिथिलाचार उत्पन्न हुआ था।
वे मठों । मंदिरों में रहने लगे, जिनप्रतिमा बेचने लगे, धन का संचय करने लगे इत्यादि। 4) वि.सं. 416 में ब्रह्मदीपिका शाखा उत्पन्न हुई। इसका संबंध आचार्य वज्रस्वामी जी के
मामा आचार्य समित सूरि जी की शिष्य परम्परा से रहा।
महावीर पाट परम्परा
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