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________________ . का ज्ञान उन्हें प्रारंभ से ही था। घोषनन्दि श्रमण (श्रमण बलिस्सह) के पास वे जैन धर्म में प्रव्रजित हुए। वे 500 ग्रंथों के रचनाकार थे। उनके प्रमुख ग्रंथ इस प्रकार हैं 1. तत्त्वार्थ सूत्र : ज्ञान, भूगोल, खगोल, कर्मसिद्धान्त, आत्म तत्त्व, पदार्थ विज्ञान, मोक्ष मार्ग इत्यादि विषयों का विस्तृत वर्णन है। इसमें 10 अध्याय हैं प्रथम - ज्ञान के 5 भेद सम्बन्धी 33 सूत्र द्वितीय - संसारी जीवों के भेदों-उपभेदों सम्बन्धी 53 सूत्र तृतीय अधोलोक-मध्यलोक सम्बन्धी 39 सूत्र चतुर्थ - देवलोक (ऊर्ध्वलोक) सम्बन्धी 42 सूत्र पंचम धर्म-अधर्म आदि द्रव्य सम्बन्धी 42 सूत्र षष्ठम - आश्रव तत्त्व सम्बन्धी 27 सूत्र सप्तम संवर तत्त्व सम्बन्धी 39 सूत्र अष्टम कर्मबन्ध सम्बन्धी 26 सूत्र दशम - मोक्ष मार्ग सम्बन्धी 9 सूत्र 2. जंबूद्वीप समास प्रकरण 3. पूजा प्रकरण 4. श्रावक प्रज्ञप्ति 5. प्रशमरति प्रकरण 6. क्षेत्र विचार 7. तत्त्वार्थसूत्र भाष्य 8. पंचाशक वृत्ति 9. उत्तराध्ययन टीका 10. स्थानांग टीका आदि। जनश्रुति के अनुसार, उन्होंने एक बार पत्थर की प्रतिमा के मुख से शब्दोच्चारण कराया, ऐसी सिद्धियाँ उनमें निहित थीं। विक्रम की तीसरी-चौथी शताब्दी में हुए आचार्य उमास्वाति ने जैन वाङ्मय की परम्परा में महनीय योगदान दिया। महावीर पाट परम्परा 85
SR No.002464
Book TitleMahavir Pat Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChidanandvijay
PublisherVijayvallabh Sadhna Kendra
Publication Year2016
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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