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________________ आचार्य समन्तभद्र सूरि जी 11 अंगों एवं कुछ पूर्वो के ज्ञाता थे। भाषा पर उनका विशेष आधिपत्य था। पाटलीपुत्र, वाराणसी, उज्जैन, धार, पंजाब, सिंध, कांचीवरम् (दक्षिण प्रदेश) इत्यादि क्षेत्रों में विचरण कर आ. समन्तभद्र सूरि जी ने शास्त्रार्थो में अपने अकाट्य तर्को से मिथ्यात्व मतों को पराजित किया एवं जैन सिद्धांतों को सर्वत्र फैलाकर जिनधर्म की महती प्रभावना की। समन्तभद्र सूरि जी नगरों की अपेक्षा उपवनों - जंगलों में रहना विशेष पसंद था। गृहस्थ से परिचय कम, उपधि कम, ध्यान योग की सुविधा इत्यादि लाभों के कारण वे वनों में अधिक विचरण करते थे। इसी कारण इनके समय में चन्द्र गच्छ का नाम 'वनवासी गच्छ' पड़ गया। इनसे पूर्व ही जैनशासन में श्वेताम्बर वं दिगम्बर परम्पराएं बँट गई थी। आचार्यश्री ने इन दोनों को एक बनाने का खूब प्रयत्न किया किंतु उनके ये प्रयत्न सफल नहीं हुए। जंगलों में रहने के कारण एवं दिगंबर परम्परा से पूर्व में भी सम्बन्ध होने के कारण दिगम्बर परम्परा उन्हें समान दृष्टि से मानते हैं। विशाल क्षेत्र में विहार कर उन्होंने शासन की महती प्रभावना की। साहित्य रचना : आचार्य समन्तभद्र सूरि जी बौद्ध, नैयायिक, सांख्य, वेदान्त आदि विभिन्न दर्शनों के ज्ञाता थे। सभी दर्शनों की समीक्षा करते हुए उन्होंने उत्तम कोटि के साहित्य का सर्जन किया। उनकी प्रमुख रचनाएं इस प्रकार हैं1) आप्त मीमांसा (देवागम स्तोत्र) - आचार्य समन्तभद्र सूरि जी की इस प्रथम रचना में 10 परिच्छेद तथा 114 श्लोक हैं। एकान्तवादी दृष्टिकोणों का उचित तर्को की कसौटी पर विश्लेषण तथा आप्त पुरुषों के आप्तत्त्व की सम्यक् मीमांसा होने से यह आप्त मीमांसा के नाम से जाना गया। इस कृति का प्रारंभ 'देवागम' शब्द से हुआ है। विद्वानों ने इसे उच्चकोटि का ग्रंथ माना है। स्याद्वाद सम्बन्धी विस्तृत विवेचना सर्वप्रथम इस ग्रंथ में हुई मानी जाती है। दिगंबर आचार्य अकलंक, श्वेताम्बर उपाध्याय यशोविजयजी आदि ने इस पर सुंदर टीकाएं रची हैं। 2) स्वयंभू स्तोत्र (चतुर्विशति जिनस्तुति) - वसन्त, इंद्रवज्रा इत्यादि 13 छंदों में रचे इस ग्रंथ में 143 पद्य हैं। अलंकारपूर्ण सरल भाषा में 24 तीर्थंकरों की स्तुति की गई महावीर पाट परम्परा
SR No.002464
Book TitleMahavir Pat Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChidanandvijay
PublisherVijayvallabh Sadhna Kendra
Publication Year2016
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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