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तीर्थंकर : एक अनुशीलन 8 61
26.. आभरणविहिं - अलंकार निर्माण की तथा धारण की कला। 27. तरुणीपडिकम्मं - स्त्री को शिक्षा देने की कला। 28. इत्थीलक्खणं - स्त्री के लक्षण जानने की कला। 29. पुरिसलक्खणं - पुरुष के लक्षण जानने की कला। 30. हयलक्खणं - घोड़े के लक्षण जानने की कला। 31. गयलक्खणं – हस्ती के लक्षण जानने की कला। 32. गोलक्खणं – गाय के लक्षण जानने की कला। 33. कुक्कुडलक्खणं - कुक्कुट के लक्षण जानने की कला। 34. मिढयलक्खणं - मेंढे के लक्षण जानने की कला। 35. चक्कलक्खणं - चक्र लक्षण जानने की कला। 36. छत्तलक्खणं - छत्र लक्षण जानने की कला। 37. दण्डलक्खणं - दण्ड लक्षण जानने की कला। 38. असिलक्खणं - तलवार के लक्षण जानने की कला। 39. मणिलक्खणं - मणि-लक्षण जानने की कला। 40. कागणिलक्खणं - काकिणी-चक्रवर्ती के रत्नविशेष के लक्षण को जानने की कला। 41. चम्मलक्खणं - चर्म-लक्षण जानने की कला। 42. चंदलक्खणं - चन्द्र लक्षण जानने की कला। 43. सूरचरियं - सूर्य आदि की गति जानने की कला। 44. राहुचरियं - राहु आदि की गति जानने की कला। 45. गहचरियं – ग्रहों की गति जानने की कला। 46. सोभागकरं – सौभाग्य का ज्ञान। 47. दोभागकरं – दुर्भाग्य का ज्ञान। 48. विज्जागयं - रोहिणी, प्रज्ञप्ति आदि विद्या सम्बन्धी ज्ञान। 49. मंतगयं – मन्त्र साधना आदि का ज्ञान। 50. रहस्सगयं - गुप्त वस्तु को जानने का ज्ञान। 51. सभासं - प्रत्येक वस्तु के वृत्त का ज्ञान। ' 52. चारं - सैन्य का प्रमाण आदि जानना।
53. पडिचारं - सेना को रणक्षेत्र में उतारने की कला। असत्य-वचन, तिरस्कार्ता वचन, झिड़कते हुए वचन, कटु वचन, अविचार पूर्ण वचन और शान्त हुए कलह को पुन: भड़काने वाले वचन ये छह तरह के वचन कदापि न बोलें।
___ - स्थानांग (6/3)