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तीर्थंकर : एक अनुशीलन @ 52
हो गया। यह गर्भस्थ शिशु का प्रभाव है, ऐसा जानकर नाम 'शीतल' रखा गया। 11. तीर्थंकर श्रेयांस - महरिहसिज्जारुहणंमि डोहलो तेण सिज्जंसो॥ पवित्र पूजा में स्थल पर
रही हुई देवाधिष्ठित शय्या पर बैठने से उपसर्ग हुआ करते थे। माता विष्णुदेवी को ऐसी देवता परिगृहीत शय्या पर बैठने का दोहद उत्पन्न हुआ। गर्भ के प्रभाव से उस शय्या पर बैठने से देव कुछ भी अश्रेय (अहित) नहीं कर पाया। श्रेयस् हो जाने के कारण प्रभु का नाम 'श्रेयास' रखा गया। तीर्थंकर वासुपूज्य - पूएइ वासवो जं अभिक्खणं वसणि रयणाणि वसुपुज्जो॥ बारहवें तीर्थंकर जब माता जया की कुक्षि में अवतरित हुए, तब वासव (इन्द्र) ने पुनः पुनः जननी की पूजा की एवं वासव (वैश्रमण) ने वसु रत्नों की वृष्टि की, अत: पुत्र का नाम 'वासुपूज्य' रखा। तीर्थकर विमल - विमलतणुबुद्धि जणणी गब्भगए तेण होइ विमलजिणो। प्रभु की उपस्थिति गर्भ में होने के कारण माता श्यामा ने स्त्रीरूप व्यंतरी एवं अन्य स्त्री का झगड़ा सुलझाया। माता श्यामा की बुद्धि और शरीर अत्यंत विमल (निर्मल) हो गए। गर्भस्थ शिशु का ही
प्रभाव है, ऐसा जानकर जन्मोपरांत 'विमल' नाम से अभिहित किया गया। 14. तीर्थंकर अनन्त - रयणविचित्तमणंतं दामं सुमिणे तओऽणंतो॥ गर्भस्थ शिशु के प्रभाव से
एक दिन माता सुयशा ने स्वप्न में रत्नखचित अनंत रत्नों की माला तथा आकाश में अंत बिना का बहुत बड़ा चक्र घूमता देखा। साथ ही, अनंत गांठ के डोरे से लोगों के ज्वर
को मिटाया। सब कुछ बिना अंत का दृष्टिगोचर होने से शिशु का नाम 'अनन्त' रखा गया। 15. तीर्थंकर धर्म - गब्भगए जं जणणी जाय सुधम्मत्ति तेण धम्मजिणो। जब पंद्रहवें तीर्थंकर
गर्भ में आए, तब माता-पिता श्रावक धर्म में विशेष रूप से उपस्थित हुए एवं धर्मपालन
करने लगे। अतः प्रभु का नाम 'धर्मनाथ' रख दिया। 16. तीर्थंकर शान्ति - जाओ असिवोवसमो गब्भगए तेण संति जिणो॥ गर्भवती माता द्वारा जल
के छिड़काव से हस्तिनापुर नगरी में फैली ‘मरकी' नामक महामारी का अंत हो गया एवं
सर्वत्र शांति हुई। प्रभु की महिमा से ही शांति हुई है, ऐसा जान नाम 'शांतिजिन' रखा। 17. तीर्थंकर कुंथु - थूहं रयणविचित्तं कुंथु सुमिणमि तेण कुंथु जिणो॥ गर्भवती माता श्रीदेवी
ने स्वप्न में कु (भूमि) पर स्थित थु (रत्नों का विशाल स्तूप) देखा था। प्रभु के प्रभाव से 'कुंथु' जैसे छोटे छोटे जीवों की भी जयणा प्रवर्ती थी। शत्रु राजा भी कुंथु समान छोटेनिर्बल हो गए थे। इन्हीं कारणों से बालक का नामकरण 'कुंथु' किया गया।
लोभ, क्लेश और कषाय परिग्रह-वृक्ष के स्कन्ध हैं। जिसकी चिन्ता रूपी सैकड़ों ही सघन और विपुल शाखाएँ हैं।
- प्रश्नव्याकरणसूत्र (1/5)