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तीर्थंकर : एक अनुशीलन 8 46 ढाई सौ अभिषेक की गणना इस प्रकार हैभवनपति देवों के इन्द्रों के
20 अभिषेक व्यंतर देवों के इन्द्रों के
16 अभिषेक वाणव्यंतर देवों के इन्द्रों के
16 अभिषेक वैमानिक देवों के इन्द्रों के
10 अभिषेक अढ़ाई द्वीप के सूर्य विमान के इन्द्रों के
66 अभिषेक अढ़ाई द्वीप के चन्द्र विमान के इन्द्रों के
66 अभिषेक 7. असुरेन्द्र धरणेन्द्र (भवनपति) की इन्द्राणियों के
6 अभिषेक 8. असुरेन्द्र (भवनपति) भूतानंद की इंद्राणियों के
6 अभिषेक असुरेन्द्र (भवनपति) की इंद्राणियों के
10 अभिषेक सौधर्मेन्द्र की इन्द्राणियों के
8 अभिषेक 11. ईशानेन्द्र की इन्द्राणियों के
8 अभिषेक 12. ज्योतिष की इन्द्राणी के
4 अभिषेक 13. व्यंतर की इन्द्राणी के
4 अभिषेक 14. लोकपाल देवताओं के
4 अभिषेक 15. सामानिक देवों का
1 अभिषेक 16. त्रायस्त्रिंशक (गुरु स्थानिक) देवों का
1 अभिषेक 17. अंगरक्षक देवों का
1 अभिषेक 18. पारिषद (बाह्य आभ्यंतर, मध्यम सभा) देवों का
1 अभिषेक 19. प्रजादेव (प्रकीर्ण) देवताओं का
1.अभिषेक 20. अनीकाधिपति (सेनापति- 7 कटक) देवों का
1 अभिषेक
कुल : 250 अभिषेक ऐसे 204 देवता सम्बन्धी एवं 46 इन्द्राणी संबंधी, कुल 250 अभिषेक देव-देवी हर्ष, आनंद एवं उत्साह से करते हैं।
सर्वप्रथम बारहवें देवलोक के अच्युतेन्द्र ने अभिषेक प्रारम्भ किया। शिशु रूप तीर्थंकर सौधर्मेन्द्र की गोद में बैठते हैं। उसके बाद अनुक्रम से 10वें-9वें, 8वें इत्यादि देवलोक के इन्द्र अभिषेक करते हैं। अन्त में सूर्य चन्द्र अभिषेक करते हैं।
धर्म-वृक्ष का मूल है 'विनय' और उसका परम-अंतिम फल है मोक्ष। सचमुच विनय के द्वारा ही मनुष्य कीर्ति, विद्या, प्रशंसा और समस्त इष्ट तत्त्वों को प्राप्त करता है।
- दशवैकालिक (6/2/2)