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________________ मंगल आशीर्वाद . साध्वी श्री पूर्णप्रज्ञाश्री जी ने प्रस्तुत पुस्तक में तीर्थंकर आत्माओं की विशेषताएँ, अतिशय, तथा विशिष्ट गुणों का वर्णन किया है। केवलज्ञानी तीर्थंकर परम उच्चकोटि के आत्मसाधक होते हैं। उनके विषय में मुझ जैसा अल्पज्ञ क्या कुछ कह सकता है और क्या कुछ लिख सकता है। हमारे लिए तो वे परम प्रेरणा स्रोत तथा परम आराध्य हैं। उनसे तो हम हमेशा शुभाशीर्वाद ही चाहते हैं। कृपा की ही याचना करते हैं। सृष्टि के प्राणी मात्र के प्रति करुणामयी भावना का संकल्प लेकर वे तीर्थंकर नामकर्म का उपार्जन करते हैं और तीर्थंकर बनते हैं। समता भाव से स्वयं के उपार्जित कर्मों का क्षय कर अपनी आत्म शक्तियों को प्रगट करते हैं। तत्पश्चात् प्रत्येक जीव के प्रति करुणा भाव से उनको आत्मोत्थान का पथ बतलाते हैं। हम तो परमात्मा से यही प्रार्थना करते हैं कि आप जैसी करुणा, वात्सल्य, अप्रमाद, शान्ति और समता का हमें वरदान दें जिससे हम भी आत्मशक्तियों को जागृत कर स्व- पर का कल्याण कर सकें; मानव जीवन को सफल बना सकें। साध्वी श्री जी ने इस पुस्तक के लेखन कार्य में जो परिश्रम किया है मैं उनके शुभकार्य की सराहना करता हूँ और परमात्मा से शुभाशिष और कृपा की याचना करता हूँ कि हम भी स्वयं के जीवन को सफल बना सके। - विजय जयानन्द सूरि
SR No.002463
Book TitleTirthankar Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnapragnashreeji, Himanshu Jain
PublisherPurnapragnashreeji, Himanshu Jain
Publication Year2016
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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