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________________ तीर्थंकर : एक अनुशीलन 20 236 जम्बूद्वीप-ऐरावत तीर्थंकर | पुष्करार्ध-पश्चिम भरत क्षेत्र क्रमांक (13) अतीत चौबीसी श्री सर्वार्थ सर्वज्ञाय नमः श्री हरिभद्र अर्हते नमः श्री हरिभद्र नाथाय नमः श्री हरिभद्र सर्वज्ञाय नमः श्री गणाधिप नाथाय नमः (14) वर्तमान चौबीसी श्री प्रयच्छ सर्वज्ञाय नमः श्री अक्षोभनाथ अर्हते नमः श्री अक्षोभनाथ नाथाय नमः श्री अक्षोभनाथ सर्वज्ञाय नमः श्री मलयसिंह नाथाय नमः (15) अनागत चौबीसी श्री दिनकर सर्वज्ञाय नमः श्री धनदनाथ अर्हते नमः श्री धनदनाथ नाथाय नमः श्री धनदनाथ सर्वज्ञाय नमः श्री पौषधनाथ नाथाय नमः (16) अतीत चौबीसी 4. श्री उज्जयंतिक सर्वज्ञाय नमः 6. श्री अभिनंदन अर्हते नमः 6. श्री अभिनंदन नाथाय नमः 6. श्री अभिनंदन सर्वज्ञाय नमः 7. श्री रत्नेशनाथ नाथाय नमः (17) वर्तमान चौबीसी 21. श्री श्यामकोष्ठ सर्वज्ञाय नमः 19. श्री मरुदेवनाथ अर्हते नमः 19. श्री मरुदेवनाथ नाथाय नमः 19. श्री मरुदेवनाथ सर्वज्ञाय नमः 18. श्री अतिपार्श्व नाथाय नमः (18) अनागत चौबीसी 4. श्री नंदिषेण सर्वज्ञाय नमः 6. श्री वज्रधर अर्हते नमः 6. श्री वज्रधर नाथाय नमः 6. श्री वज्रधर सर्वज्ञाय नमः । 7. श्री निर्वाणनाथ नाथाय नमः वहाँ से वह जंबूद्वीप के शौरीपुर नगर में समुद्रदत्त सेठ की स्त्री प्रीतिमती के गर्भ से उत्पन्न हुआ। उसका नाम सुव्रत रखा गया। गार्हस्थ्य जीवन में दाक्षिण्यता को प्राप्त सुव्रत सेठ 11 करोड़ धन का स्वामी बना व लोक में माननीय भी हुआ। एक बार नगर में शीलसुंदर नामक आचार्य पधारे। वह भी उन्हें वंदन करने गया। आचार्य व मुनिवृंदों ने धर्मोपदेश में मौन एकादशी पर भी प्रकाश डाला। यह सुनते ही सुव्रत सेठ के मन में ऊहापोह होने लगा और उसे जातिस्मरण ज्ञान उत्पन्न हुआ। गुरुदेव से मार्गदर्शन लेकर मौन एकादशी का तप संपूर्ण परिवार के साथ करने का संकल्प लिया। दूध पीने की कोई कितनी ही तीव्र अभिलाषा क्यों न रखे, पर बांझ गाय से कभी दूध नहीं मिल सकता है। - बृहत्कल्पभाष्य (1944)
SR No.002463
Book TitleTirthankar Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnapragnashreeji, Himanshu Jain
PublisherPurnapragnashreeji, Himanshu Jain
Publication Year2016
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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