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तीर्थंकर : एक अनुशीलन 8 183
नामकरण
प्रथम स्वप्न में 'वृषभ' व शिशु की जंघा पर वृषभ चिह्न के कारण। 2. द्यूतक्रीड़ा (सोगठबाजी) में माता के द्वारा राजा को पराजित करने के कारण। 3. राज्य में दुष्काल होने पर भी अत्यधिक धान्य संभावित होने के कारण। 4. गर्भरूप में भी इन्द्र के द्वारा सदा अभिनंदन किए जाने के कारण। 5. न्याय करने में माता द्वारा सुमति (श्रेष्ठ बुद्धि) के परिचय के कारण। 6. गर्भप्रभाव से माता को हुए पद्मशय्या में सोने के दोहद के कारण। 7. गर्भप्रभाव से माता के पार्श्व (कंधे) सुंदर व प्रभावशाली होने के कारण। 8. गर्भप्रभाव से माता के चंद्रपान के दोहद व शिशु की चंद्र समान आभा के कारण। 9. माता ने संपूर्ण विधियों में कुशलता अर्जित की व बालक के दाँत पुष्प की भाँति थे। 10. माता के करस्पर्श से पिता का दाहज्वर शीतल (शांत) हो जाने के कारण। 11. माता द्वारा अपने आप को श्रेय करने वाली देवशय्या में सोते हुए देखने के कारण। 12. वसुपूज्य राजा के पुत्र होने, वसुदेवता द्वारा वसुरत्नों की वृष्टि करने के कारण। 13.. गर्भ के प्रभाव से माता का, शरीर एवं बुद्धि विमल (स्वच्छ) हो जाने के कारण। 14. गर्भ में आने पर माता के द्वारा अनंत मणियों की माला व अनंत चक्र देखने के कारण। 15. प्रभु के गर्भ में आने पर माता द्वारा धर्म का अधिक पालन करने के कारण। 16. गर्भ के प्रभाव से संपूर्ण राज्य में व्याप्त महामारी की शान्ति हो जाने के कारण। 17. गर्भवती माता द्वारा जमीन पर रहे रत्नस्तूप (कुंथु) देखने के कारण। 18. माता द्वारा स्वप्न में अतिविशाल रत्नमय चक्र (अर) देखने के कारण। 19. माता को हए, रात्रि में 6 ऋतओं की पष्पशय्या में सोने के दोहद के कारण। 20. गर्भप्रभाव से माँ को मुनि की भांति सुंदर व्रत पालने की इच्छा जगी। 21. गर्भस्थ शिशु के प्रभाव से विरोधी शत्रुओं के भी नतमस्तक हो जाने के कारण। 22. गर्भकाल में माता द्वारा स्वप्न में अरिष्टरत्नमय चक्र देखे जाने के कारण। 23. गर्भप्रभाव से माता ने अंधकार में भी पास से जाते काले सर्प को देखा। 24. राज्य में धन-धान्य समृद्धि के कारण व प्रभु की वीरता के कारण।
विशेष: तीर्थंकरों के नाम प्रमुखतया मातृइच्छा से प्रभावित रहे। इनका सविशेष वर्णन पुस्तक के
प्रथम विभाग में दिया गया है। ऋषभ, चंद्रानन, वारिषेण और वर्धमान ये 4 शाश्वत नाम