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________________ तीर्थंकर : एक अनुशीलन 88169 सूरीश्वर जी कहते हैं कि तीर्थंकर की दक्षिणभावी जंघा पर जो चिह्न होता है, वही उनका लछण निर्धारित होता है। श्री त्रिकालवर्ती महापुरुष में उल्लिखित है जम्मण काले जस्स दु दाहिण पायम्मि होइ जो चिन्हं । तं लक्खण पाउ तं, आगमसुते सुजिण देहे ॥ अर्थात् - तीर्थंकर के जन्म के समय उनके दाएँ (दाहिने) पैर के अँगूठे पर इन्द्र जो चिह्न देखते हैं, उसी को उनका लांछण निश्चित कर देते हैं। . स्पष्ट है कि तीर्थंकर परमात्मा का लांछण जन्म से ही उनके शरीर पर होता है। प्रत्येक तीर्थंकर का विशिष्ट लांछण होता है । महाविदेह क्षेत्र, ऐरावत आदि क्षेत्रों में भी तीर्थंकर (विहरमानों) के विशिष्टतम लांछण होते है। लांछण कौनसा होगा, यह तीर्थंकर नाम कर्म, शरीर नाम कर्म आदि कर्मप्रकृतियों से भी सम्बन्धित होता है। वर्तमान समय में कतिपय प्रबुद्ध विचारकों ने लांछण के मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण पर चिन्तन - विश्लेषण करने का प्रयत्न किया है। 24 तीर्थंकरों में से 17 तीर्थंकरों के चिह्न पशु-पक्षी जगत् से संबन्ध रखते हैं। सभी लक्षण प्रकृति की सौम्यता से जुड़े हैं जिससे तीर्थंकर परमात्मा के हृदय में प्राणी जगत् के प्रति करुणामय एवं आत्मतुल्य दृष्टि ध्वनित होती है। कुछ तीर्थंकरों के लांछण का मनोवैज्ञानिक संबंध उनके पूर्वभव, जीवन, माता के दोहद आदि से जोड़ा जाता रहा है। यथा • ऋषभदेव जी ने 400 बैलों के मुख पर छींकी लगाने का सुझाव दिया एवं कृषि का प्रवर्तन किया जिसका संबंध वृषभ (बैल) से है व उनका चिह्न वृषभ है। • पद्मप्रभ जी की माता ने स्वप्न में पद्मसरोवर का दोहद देखा व यही उनका चिह्न है । • चन्द्रप्रभ जी की माता ने चन्द्रपान का दोहद किया व चंद्र ही उनका चिह्न है। • पार्श्वनाथ जी की माता ने गर्भकाल में सर्प को देखा। पार्श्वकुमार ने जलती लकड़ी में सर्प को जीवित बचाया एवं उनका चिह्न सर्प है। • नेमिनाथ जी के शंख बजाने का प्रसंग प्रसिद्ध है व उनका चिह्न शंख है । • महावीर स्वामी का जीव एक भव में सिंह बना था एवं वासुदेव के भव में सिंह को उन्होंने मारा था। उनका चिह्न सिंह है । इत्यादि जो और जितने हेतु संसार के हैं, वे और उतने ही हेतु मोक्ष के हैं । ओ नियुक्ति (53)
SR No.002463
Book TitleTirthankar Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnapragnashreeji, Himanshu Jain
PublisherPurnapragnashreeji, Himanshu Jain
Publication Year2016
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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