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तीर्थंकर : एक अनुशीलन 136 तीर्थंकर एवं सामान्य केवली
कोई भी भव्यात्मा जब केवलज्ञान प्राप्त कर लेती है, तब उसे केवली कहते हैं। यूँ तो सभी केवलज्ञानी का केवलज्ञान समान होता है एवं उनकी आत्मदशा भी समान होती है किन्तु निमित्त, विभूतियों एवं अन्य अपेक्षाओं से दो प्रकार के केवली कहे हैं1. तीर्थंकर केवली - जैसा कि हम पढते आए हैं, तीर्थंकर अनेकानेक अतिशयों से युक्त
होते हैं। वे स्वयं संबुद्ध होते हैं अर्थात् वे न ही किसी के प्रतिबोध से एवं न ही किसी निमित्त से प्रतिबोधित होते हैं। वे समवसरण में देशना देकर चतुर्विध संघ की रचना करते हैं जिससे उनके नाम का शासन चलता है। सामान्य केवली - चक्रवर्ती बलदेव, गणधर, साधु इत्यादि कोई भी अन्य आत्मा, जब केवलज्ञान-केवलदर्शन पा लेती है, उन्हें शास्त्रीय भाषा में सामान्य केवली कहा गया है। ये आत्माएँ क्षायिक भाव प्राप्त कर अथवा संयोग अंतकृत से केवली बनती हैं। चारित्र ग्रहण किए बिना (भाव अथवा द्रव्य) केवलज्ञानी नहीं बन सकते। ये आत्माएँ दो प्रकार से दीक्षा ग्रहण करती हैं। 1. प्रत्येक बुद्ध - जो भव्य जीव किसी निमित्त को पाकर वैराग्य पाते हैं, वे प्रत्येक
बुद्ध हैं। चार प्रत्येक बुद्ध अति-प्रसिद्ध हैं
1. नमि , 2. करकंडु, 3. दशार्णभद्र, 4. नगाति तीर्थंकर पार्श्वनाथ के शासनकाल के 15 प्रत्येक बुद्ध निम्न हैं
1. गोहावती पुत्र-तरुण 2. दगमाल 3. रामपुत्र
4. हरिगिरि 5. अम्बड
. 6. मातंग 7. वरत्तक
8. आर्द्रक 9. वर्धमान
10. वायु 11. पार्श्व
12. पिंग 13. महाशाल पुत्र-अरण 14. ऋषिगिरि
15. उद्दालक अन्य तीर्थंकरों के शासनकाल में भी प्रत्येकबुद्ध होते हैं। यथा
पत्तेय बुद्धमिसिणो बीसं तित्थे अरिट्ठणेमिस्स। पासस्स य पण्णरस, वीरस्स विलीणमोहस्स॥