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तीर्थंकर : एक अनुशीलन 8 130
तीर्थंकर के मोक्ष जाते ही अव्यवहार राशि (निगोद) में भटकती एक अन्य भव्यात्मा व्यवहार राशि में आती है। तीर्थंकर जगत् में भाव उद्योत करते हैं। इन्द्रादि कृत निर्वाण क्रिया
जब तीर्थंकर भगवान का निर्वाण समय निकट आता है, तो वे तेरहवें-सयोगीकेवली गुणस्थानक को छोड़कर चौदहवें अयोगीकेवली गुणस्थानक में ठहरकर एक समय मात्र में ही मोक्ष में चले जाते हैं। कई बार उनके साथ समय के उसी योग में अनेक गणधर, अणगार उनके साथ ही मोक्ष चले जाते हैं।
तीर्थंकर का निर्वाण होते ही देवराज शक्र का आसन चलित होता है। वह अवधिज्ञान का प्रयोग कर सोचता है कि अमुक तीर्थंकर ने परिनिर्वाण प्राप्त कर लिया है। अतः अतीत वर्तमान, अनागत शक्रेन्द्रों का यह जीताचार है कि वे निर्वाण क्रिया संपन्न कर महोत्सव मनाएँ। अत मैं भी तीर्थंकर भगवान् का परिनिर्वाण महोत्सव आयोजित करने जाऊँ। यों सोचकर देवेन्द्र सामानिक त्रायस्त्रिंशक, आत्मरक्षक आदि संपूर्ण देव-परिवार के साथ प्रभु के निर्वाण स्थल पर पहुँचता है। जहाँ तीर्थंकर का शरीर होता है, वह वहाँ जाता है एवं आनन्दरहित, अश्रुपूर्ण नेत्रों से आदक्षिणाप्रदक्षिणा करता है।
तदनन्तर - सभी इन्द्र स्वपरिवार सहित पहुँच जाते हैं। सौधर्मेन्द्र की आज्ञा से भवनपति, वाणव्यंतर एवं ज्योतिष्क देव नन्दनवन से स्निग्ध उत्तम गोशीर्ष चन्दन-काष्ठ लाते हैं एवं तीन चिताओं की रचना करते हैं- तीर्थंकर के लिए, गणधरों के लिए एवं बाकी अणगारों के लिए। फिर आभियौगिक देवगणं क्षीरोदक समुद्र से क्षीरोदक लाते हैं। फिर सौधर्मेन्द्र
1. तीर्थंकर के शरीर को क्षीरोदक से स्नान कराता है। 2. सरस, उत्तम गोशीर्ष चन्दन से अनुलिप्त करते हैं। 3. हंस सदृश श्वेत देवदूष्य वस्त्र पहनाते हैं। 4. सब प्रकार के आभूषणों से, अलंकारों से विभूषित करते हैं।
तत्पश्चात् शक्रेन्द्र की आज्ञानुसार भवनपति, वैमानिक आदि देव, मृग, वृषभ, तुरंग, वनलता इत्यादि चित्रों से अंकित तीन शिविकाओं की विकुर्वणा (निर्माण) करते हैं- तीर्थंकर के लिए, गणधरों के लिए, अन्य अणगारों के लिए। उदास एवं खिन्न सौधर्मेन्द्र तीर्थंकर के देह को चिता पर रखते हैं। अन्य देव गणधर एवं साधुओं के शरीर शिविका पर आरूढ़ करके चिता पर रखते हैं। कई
कुछ पुत्र गुणों की दृष्टि से अपने पिता से बढ़कर होते हैं। कुछ पिता के समान होते हैं और कुछ पिता से हीन। कुछ पुत्र वंश का सर्वनाश करने वाले-कुलांगार होते हैं। - स्थानांग (4/1)