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________________ तीर्थंकर : एक अनुशीलन 128 जिज्ञासा - तीर्थंकरों को 'पुरिससिहाणं' आदि कहा है। क्या यहाँ पुरुष का अर्थ आदमी से है ? पुरुष संबंधी 4 विशेषण कब मान्य होते हैं ? समाधान - “ललित विस्तरा' नामक महाग्रन्थ में कहा गया है कि “पुरि शयनात् पुरुषाः " अर्थात्पुरु में शयन करने वाला, शरीर में रहने वाला पुरुष है । अत: संदर्भ में पुरुष का अर्थ आदमी नहीं, बल्कि जीवमात्र है। चार में से पुरुषोत्तमपन पहले से होता है । पुरुषसिंहपन व पुरुषगंधहस्तिपन मध्य में होता है व पुरुषपुण्डरीकपन जीवन के अन्त में सिद्धावस्था में होता है। जिज्ञासा तीर्थंकरों को किस प्रकार की उपमाएँ दी जाती हैं। समाधान 'उपमा' भी व्याकरण का विशिष्ट अंग है जिसमें व्यक्ति के परम गुण तुलना के द्वारा दर्शाए जाते हैं। कल्पसूत्र में तीर्थंकरों को निम्नलिखित उपमाओं से उपमित / विभूषित किया गया है। 1. कांस्यपात्र की तरह निर्लेप 2. शंख की तरह निरंजन - रागरहित 3. आकाश की भाँति आलंबन रहित 4. पवन की भाँति अप्रतिबद्ध 5. शरदऋतु के जल के समान निर्मल 6. कमलपत्र के समान भोग से निर्लिप्त 7. गैडे के सदृश एकाकी 8. कच्छप सदृश जितेन्द्रिय 9. पक्षी की तरह अनियत विहारी - . 10. श्रेष्ठ हाथी के समान शूर 11. सुमेरु की तरह परिषहशमनकर्ता 12. स्वर्ण की तरह कान्तिमान 13. पृथ्वी के समान सहिष्णु 14. अग्नि की भांति जाज्वल्यमान 15. वृषभ के समान पराक्रमी 16. भारण्ड पक्षी की तरह अप्रमत 17. जीव की तरह अप्रतिहत गतिधारी, इत्यादि ।
SR No.002463
Book TitleTirthankar Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnapragnashreeji, Himanshu Jain
PublisherPurnapragnashreeji, Himanshu Jain
Publication Year2016
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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