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________________ तीर्थंकरों के विशेषण इस अध्ययन में हम चर्चा करेंगे कि तीर्थंकरों को किन-किन विशेषणों से विभूषित किया गया है। विशेष्य तो तीर्थंकर परमात्मा ही हैं, किन्तु वे इतने गुणविशाल होते हैं कि उनके विशेषण अनंत होते हैं। तीर्थंकरों के जन्म कल्याणक पर सौधर्मेन्द्र प्रभु की गुणस्तुति 108 काव्यों से करता है जिनमें एक विशेषण शब्द का प्रयोग दूसरी बार नहीं होता है। तीर्थंकर भगवान् जो सबसे सर्वसाधारण - सर्वप्रचलित विशेषण तीर्थंकरों के लिए उपयोग करते हैं, वह है 'भगवान।' भगवान शब्द का अर्थ क्या है और तीर्थंकर को भगवान की उपाधि क्यों दी जाती है? इसके उत्तर में शास्त्रकार महर्षि लिखते हैं - भगवा ति वचनं सेठं भगवा ति वचनमुत्तमं । . गुरुगारवयुत्तो सो भगवा तेन वुच्चति ॥ अर्थात् - जिनके वचन उत्तमोत्तम हैं एवं जो शील आदि गुणों में सर्वश्रेष्ठ है वह भगवान है। विपाक सूत्र की टीका में लिखा है भावितसीलो भावितचित्तो भावितपळे ति भगवा। - अर्थात् - जिसके शील, चित्त और प्रज्ञा भावित है, वह भगवान है। 'भगवान' शब्द भग से निर्मित है। जो ‘भग' से युक्त है वो भगवान है। ‘भग' शब्द की व्याख्या करते हुए ग्रन्थों में अनेक अर्थ दिए हैं। विशेषावश्यक भाष्य में उल्लिखित है इस्सरियरूवसिरिजसधम्मपयत्ता मया भगाभिक्खा। ते तेसिमसामण्णा संति जओ तेण भगवंते ।। अर्थात् - भग शब्द के छह अर्थ हैं- ऐश्वर्य, रूप, श्री (लक्ष्मी), यश, धर्म और पुरुषार्थ। जो इनसे युक्त हैं, वे भगवान् हैं। ललित विस्तरा में भी 'भग' शब्द के 6 अर्थ दिये हैं। योगशास्त्र मेघ के समान दानी भी चार प्रकार के होते हैं- कुछ बोलते हैं, देते नहीं। कुछ देते हैं; किन्तु कभी बोलते नहीं। कुछ बोलते भी है और कुछ देते भी है। कुछ न बोलते हैं, न देते हैं। - स्थानांग (4/4)
SR No.002463
Book TitleTirthankar Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnapragnashreeji, Himanshu Jain
PublisherPurnapragnashreeji, Himanshu Jain
Publication Year2016
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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