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________________ 10. 11. 12. 13. 14. 15. 16. 18. 19. 20. 21. 22. 17. तीर्थंकर की चारों दिशाओं में एक योजन पर्यंत सुगंधित अचित्त जलवृष्टि से भूमि की धूलि का पूर्ण शमन होना । 23. तीर्थंकर : एक अनुशीलन 115 तीर्थंकर के आगे आकाश में रत्नजड़ित स्तंभ वाले, हजार पताकाओं से युक्त इन्द्रध्वज का चलना । भगवान जहाँ जहाँ ठहरें - बैठें, वहाँ पर उसी समय पत्र, पुष्प व पल्लव से सुशोभित छत्र, घंटा, ध्वज व पताका सहित अशोक वृक्ष का प्रकट होना । 24. दसों दिशाओं को प्रकाशित करने वाला, प्रभु के थोड़ा पीछे की ओर अतिभास्वर ( देदीप्यमान) तेजोमंडल प्रभामंडल का होना । प्रभु जहाँ-जहाँ विचरें, वहाँ का भूमि भाग गड्ढे या टीले से रहित समतल एवं रमणीय हो जाना । प्रभु के विचरण पर काँटों का अधोमुख अर्थात् उल्टे हो जाना ताकि पैर में न चुभ सकें । तीर्थंकर जहाँ विचरते हैं, वहाँ की ऋतुओं का सुखस्पर्श वाली अर्थात् अनुकूल हो जाना तथा मौसम का सुहावना होना । प्रभु के चारों ओर एक - एक योजन ( चार-चार कोस ) तक सुगन्धित वायु का चलना व भूमिक्षेत्र स्वच्छ व शुद्ध होना । तीर्थंकर जहाँ विचरते हैं, वहाँ पर पाँच प्रकार के अचित्त पुष्पों की देवकृत जानुप्रमाण वृष्टि होना, जिनका डंठल सदैव नीचे की तरफ तथा मुख ऊपर की ओर होता है । अमनोज्ञ अशुभ शब्द, स्पर्श, रस, रूप, वर्ण और गंध का अपकर्ष ( नाश ) । मनोज्ञ शुभ शब्द, स्पर्श, रस, रूप, वर्ण व गंध का उद्भव ( प्रकट) होना । देशना देते समय भगवान् का स्वर गंभीर एवं हृदयस्पर्शी होना व एक योजन तक सुनाई देना । - - प्रभु का अर्धमागधी भाषा ( आर्ष प्राकृत व मागधी भाषा का सम्मिश्रण) में धर्मप्रवचन होना । अर्द्धमागधी भाषा का आर्य एवं अनार्य के मनुष्य, द्विपद (पक्षी), अपद (सर्प आदि), चतुष्पद (पशु) आदि तिर्यंच को अपनी-अपनी भाषा में कल्याणकारी, हितकारी परिणत होना । पहले से ही जिनके वैर बँधा हुआ है, ऐसे भवनपति, व्यंतर, वैमानिक ज्योतिष आदि देवों का प्रभु के चरणों में आकर वैर भूलना एवं प्रसन्नचित्त हो धर्मश्रवण करना । आत्मा ही सुख-दुःख का कर्त्ता और भोक्ता है। सत्प्रवृत्ति में लगी हुई आत्मा ही मित्र है और दुष्प्रवृत्ति में लगी हुई होनेपर वही शत्रु है। उत्तराध्ययन (20/37)
SR No.002463
Book TitleTirthankar Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnapragnashreeji, Himanshu Jain
PublisherPurnapragnashreeji, Himanshu Jain
Publication Year2016
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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