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का विरुद नवसाहसांक था। उसने बागड़, लाट, दक्षिण कोसल आदि को जीता । इसकी मृत्यु गुजरात के सोलंकी चामुण्डराज के द्वारा युद्ध में हुई ।'
भोज उज्जयिनी के राजा विक्रमादित्य के समान विद्वान्, रसिक और परोपकारी था। उसने चेदि के राजा गांगेयदेव, भीमदेव व कर्णाटक के राजा जयसिंह (तैलप के पौत्र) को पराजित किया था। प्रसिद्ध राजनीतिज्ञ कुलचन्द्र उसका मंत्री था। राजा भोज के कई ग्रन्थ प्रसिद्ध हैं। वह स्वयं विद्वान् होने के साथ ही विद्वानों का गुणग्राहक था। वह कवियों को लक्ष-लक्ष रुपये दिया करता था। धनपाल व वेद-भाष्यकार उव्वट उसके सभा-पडित थे। कालिदास नामधारी कोई कवि भी उस समय विद्यमान था जिसका अभी तक कोई ग्रन्थ नहीं मिला है। भीमदेव और चेदि-नरेश कर्ण ने धारानगरी पर आक्रमण किया उसी समय भोज की मृत्यु हुई। भोज के उत्तराधिकारी जयसिंह, उदयादित्य, लक्ष्मदेव आदि हुए। उदयादित्य ने सांभर के विग्रहराज (तृतीय) की सहायता से अपनी शक्ति बहुत बढ़ा ली और सोलंकी कर्ण को भी पराजित किया। उसने भोज द्वारा बनायी गई "सरस्वती-कण्ठाभरण" पाठशाला को नवीन ढंग से सज्जित किया। उदयादित्य का पुत्र, मध्यभारत की अनेक कहानियों का नायक जगदेव किसी कारणवश सिद्धराज जयसिंह की राज्यसभा में चला गया था। उदयादित्य का छोटा पुत्र नरवर्मा भी बड़ा प्रतापी राजा था। उसने चित्तौड़ पर भी अपना अधिकार कर लिया था और जयसिंह की अनुपस्थिति में पाटण को घेर लिया था। नरवर्मा पर जयसिंह ने आक्रमण किया और उसके पुत्र यशोवर्मा को कैद करके मालवे पर अधिकार कर लिया। कुमारपाल की मृत्यु के बाद मालवे के परमार पुनः स्वतंत्र हो गए।
चित्तौड़ के गुहिलवंशी राजा उस समय आघाटपुर में राज्य करते थे। उदयपुर के समीप इसके खंडहर मिलते हैं । ग्यारहवीं शती में अल्लट यहां पर शासन करते थे। अल्लट के पिता भर्तृ भट्ट ने भरतपुर (माहेश्वर) बसाया। अल्लट की रानी हूण राजा की पुत्री हरियदेवी ने हर्षपुर बसाया।
भोज और चेदि के कर्ण की मृत्यु के बाद कन्नौज में गहडवाल चन्द्रदेव व उसके वंशजों का राज्य हुआ। सांभर में इस समय चौहान वंश का राज्य था। अर्णोराज चौहान जयसिंह सोलंकी का समकालीन था। उसका पुत्र विग्रहराज भी बड़ा विद्वान् था। उसने हरकेलि और ललितविग्रहराज नाटक पत्थरों पर खुदवाये थे। सोमेश्वर का पुत्र पृथ्वीराज तृतीय चौहान वंश का सबसे प्रतापी और उत्तरी भारत का अन्तिम प्रसिद्ध हिन्दू सम्राट् था।५
१. ना. प्र. पत्रिका भाग १ पृ. १२१ । २. पृथ्वीराजविजय काव्य सर्ग ५ । ३. जिनवल्लभ कृत अष्टसप्ततिका ४. प्रबन्ध-चिन्तामणि पृ. १४२. ४३ व कुमारपालचरित जयसिंहमूरि कृत १ ५. भारत का इतिहास : डा. ईश्वरीप्रसाद
[ वल्लभ-भारती