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तत्कालीन राजनैतिक अवस्था
यों तो सातवीं शती के चतुर्थ चरण से ही भारत के पश्चिमी सीमान्त पर यवनों के आक्रमण प्रारम्भ हो गये थे और सिन्ध प्रदेश पर अरबों का आधिपत्य भी हो गया, पर दशमी शती के अन्त तक इन आक्रमणों की संख्या में वृद्धि हो गई। सिन्ध से पूर्व की ओर वढ़ने में थार की मरुभूमि ने उनकी महत्वाकांक्षा और शक्ति को निरुद्ध कर दिया था, इसलिए अब इन नवीन आक्रमणों का लक्ष्य पंजाब प्रान्त बना । पंजाब की भूमि उर्वर थी और वहां के लोग थे भी समृद्ध । यह कहना असंगत न होगा कि उस समय तक यवन आक्रान्ताओं का उद्देश्य विधर्मियों के धार्मिक स्थानों को तोड़ना व उनको लूट कर लूट के माल से अपने निवास स्थान को समृद्ध करना था। भारत की उत्तरी पश्चिमी सीमा के प्रहरी पंचनद (पंजाब) क्षेत्र में उनको अपनी उद्देश्य-पूर्ति के लिए पर्याप्त अवसर था।
भारत पर अरबों का प्रारम्भिक आक्रमण सिन्ध विजय को एक परिणाम शून्य विजय कहा गया है।' दशम शती के ये आक्रमण भी परिणाम शून्य कहे जायं तो अत्युक्ति न होगी। हां, अब ये आक्रमण समृद्ध भागपर हो रहे थे और इस कारण आक्रान्ताओं को यथेष्ट धन लूट में मिल जाता था। प्रारम्भिक आक्रमणों के समय अरबों ने भारतीय ज्ञान-विज्ञान को ग्रहण किया था, जिनके माध्यम से यूरोप में इनका प्रचार हुआ। किन्तु दशम शती तक आते २ इन आक्रमणों का ऐसा भी कोई उद्देश्य न रहा। इस दृष्टि से इन आक्रमणों को एक सशक्त डाकेजनी के रूप में स्वीकार किया जा सकता है।
दशमशती में खलीफाओं की केन्द्रीय शक्ति के निर्बल हो जाने पर गजनी में एक स्वतंत्र राज्य की स्थापना हो गई। गजनी भारत के अति निकट था इसलिए शीघ्र ही यह भारत पर आक्रमण का केन्द्र बन गया। ९७७ ई० में गजनी का शासन सुबुक्तगीन के हाथ में आया। उसने शीघ्र ही भारत पर आक्रमण करना प्रारम्भ किया। भारत पर होने वाले यवनों के आक्रमणों में सुबुक्तगीन व उसके उत्तराधिकारी महमूद के आक्रमण अधिक महत्व रखते हैं। सुबुक्तगीन का संघर्ष कई बार सीमा प्रान्त के शाहीवंशी शासक जयपाल से हुआ। यद्यपि जयपाल सुबुक्तगीन को हरा न सका तो भी उसने विश्वासी सैनिक की भांति भारत के उत्तरी पश्चिमी सिंहद्वार की अर्गला की शक्ति रहते रक्षा की। सुबुक्तगीन विजय पाकर भी आगे न बढ़ सका।
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सुबुक्तगीन के उत्तराधिकारी महमूद ने १००० ई० से १०२६ ई. तक भारत पर १७ आक्रमण किये और अतुल धनराशि लूट कर अपने साथ गजनी ले गया। महमूद से हारकर जयपाल ने ग्लानि से चितारोहण किया। जयपाल का पुत्र आनन्दपाल भी उसी के समान
१. भारत का इतिहास : डॉ. ईश्वरीप्रसाद । २. भारत का इतिहास : डॉ. ईश्वरीप्रसाद।
[वल्लभ-भारती