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________________ अध्याय:१ पूर्वाभास और गुरु-परम्परा प्रस्तुत ग्रन्थ में खरतरगच्छ के एक प्रमुख आचार्य श्री जिनवल्लभसूरि के ४४ ग्रन्थों . का संग्रह एवं अध्ययन किया गया है। इन ग्रन्थों की विशेषताओं के विषय में कुछ भी कहने से पूर्व आचार्य के जीवन तथा उनके महत्वपूर्ण कार्यों को जान लेना तथा ऐतिहासिक दृष्टि से आचार्य की जो देन समाज को प्राप्त हुई उस पर विचार कर लेना आवश्यक है। किसी भी व्यक्ति के जीवन का मूल्य आंकने के लिए उसके आस-पास की परिस्थितियों को तथा तत्कालीन सामाजिक शक्तियों को जान लेना आवश्यक है। क्योंकि जहां यह ठीक है कि व्यक्ति अपनी कुछ सहज प्रतिभा तथा शक्ति को लेकर जन्म ग्रहण करता है वहां यह भी सच है कि व्यक्ति की प्रतिभा और शक्ति तत्कालीन परिस्थितियों से मर्यादित और प्रभावित होकर अभिव्यक्त होती है। कुछ ऐसे भी व्यक्ति हैं जो समाज के अन्ध-भक्त न होकर उलटे उसको अपने पद-चिन्हों पर चलाया करते हैं और सच पूछिये तो आचार्य जिनवल्लभ ऐसे ही महापुरुषों में से एक थे। परन्तु यह सब होते हुए भी आचार्य उस युग की आवश्यकता के अनुरूप उत्पन्न हुए थे और उसी आवश्यकता की पूर्ति के लिए सफल प्रयत्न के कारण वे जैन-धर्म के इतिहास में अपना एक निश्चित स्थान बना गये। इसलिए उनके जीवन पर कोई भी विचार तब तक नहीं किया जा सकता जब तक कि तत्कालीन राजनैतिक, सामाजिक और धार्मिक अवस्था के स्वरूप को भलीभांति न समझ लिया जाय। वल्लभ-भारती]
SR No.002461
Book TitleVallabh Bharti Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherKhartargacchiya Shree Jinrangsuriji Upashray
Publication Year1975
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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