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कवणु सु होसइ दिवसडउ, कवगु सु तिहि सुमुहुत्त । जिहि वंदिसु जिणवइ सुगुरु, निसुरिणसु धम्मह तत्तु ॥ ३३ ॥ सल्लुद्धारु करेसु हउ, पालिसु दिदु सम्मत्तु । नेमिचंदु इम वीनवइ, नंदउ विहि- जिमंदिर, नंदउ जिरणपत्तिसूरि गुरु,
सुहगुरु-गुरणगरण-रत्त ॥३४॥ नंदउ विहिसमु दाउ । विहि- जिरणधम्म पसाउ ||३५||
[ वल्लभ-भारती