________________
तंबोलो तं बोलइ जिणवसहिटिठएण सो खद्धो । खुद्ध भवदुक्खजले तरइ विणा नेय सुगुरुतरि ॥११४।। तेसि सुविहियजइणो य दंसिया जेउ हुति प्राययणं । सुगुरुजणपारतंतेण पाविया जेहिं नासिरी ॥११॥ संदेहकारितिमिरेण तरलियं जेसिं दंसणं नेयं । निव्वुइपहं पलोयइ गुरु-विज्जुवएसनो सहरो ॥११६।। निप्पच्चवायचरणा कज्जं साहति जे उ मुत्तिकरं । मन्नंति कयं तं जं कयंतसिद्ध तु सपरहियं ॥११७।। पडिसोएण पयट्टा चत्ता अणुसोप्रगामिणी वत्ता। जणजत्ताए मुक्का मय-मच्छर-मोहो चुक्का ॥११८।। सिद्ध सिद्धतकहं कहंति बीहंति नो परेहितो । वयणं वयंति जत्तो निव्वुइवयणं धुवं होइ ॥११६।। तविवरीमा अन्ने जइवेसधरा वि हुति न हु पुज्जा। तद्दसणमवि मिच्छत्तम गुखणं जणइ जीवाणं ॥१२०॥ धम्मत्थीणं जेण विवेयरयणं विसेसो ठवियं । चित्तउडे चित्तउडे ठियारण जं जणइ निवारणं ॥१२१।। प्रसाहएणावि विही य साहियो जो न सेससूरीणं ।
लोयणपहे वि वच्चइ वृच्चइ पुण जिरणमयन्नूहिं ।।१२२।। पवलोपमा
घजणपवाहसरियाणुमोअपरिवत्तसंकडे पडियो ।
पडिसोएगाणीमो धवलेण ब सुद्धधम्मभरो ॥१२३॥ मेघोपमा
कयबहुविज्जुज्जोयो विसुद्धलद्धोदनो सुमेह व्व । सुगुरुच्छाइयदोसायरपहो पहयसंतावो ॥१२४।। सम्वत्थ वि वित्थरिम वुटठो कयसस्ससंपनो सम्म ।।
नेव वायहमो न चलो न गज्जिो जो जए पयडो ।।१२।। जलध्युपमा
कहमुवमिज्जइ जलही तेरण समं जो जडारण कयबुड्ढी ।।
तियसेहिं पि परेहिं मुयइ सिरिं पिहु महिज्जतो ॥१२६।। सूर्योपमा
सूरेण जेण समुग्गएण संहरिय मोहतिमिरण । सद्दिट्ठीणं सम्मं पयडो निव्वुइपहो हो ॥१२७।। वित्थरियममलपत्तं कमलं बहुकुमयकोसिया दूसिया । तेयस्सीण वि तेप्रो विगग्रो विलयं गया दोसा ॥१२८।। विमलगुणचक्कवाया वि सव्वहा विहडिया वि संघडिया । भमिरेहि भमरेहि पि पाविमो सुमणसंजोगो ॥१२६।।
वल्लभ-भारती]