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तित्थयररायाणो पायरिया रक्वियव्व तेहिं कया। पासस्थपमुहचोरोवरुद्धघणभव्वसत्थाणं
॥१८॥ सिद्धपुरपत्थियाणं रक्खट्ठाऽऽयरिय च्याउ सेसा । अहिसेयवायणायरिय-साहुणो रखगा तेसि ।।६।।
ता तित्थयराणाए मए वि ते हुति रक्खणिज्जायो। वीरवत्ति:
इय मुणिय वीरवित्ति पडिवज्जिय सुगुरुसन्नाहं ॥१०॥ करिय खमाफलयं धरिउमक्खयं कयदुरुत्तसररक्खं । । तिहयणसिद्ध तं जं सिद्धतमसिं समुक्खिविय ॥१०१ निवारणठाणमणहं सगुणं सद्धम्म मषिसमं विहिणा। परलोयसाहगं मुक्खकारगं धरिय विप्फुरियं ॥१०२।। जेण तो पासत्थाइतेणसेरणा विहक्किया सम्म । सत्थेहि महत्थेहिं वियारिऊरणं च परिचत्ता ।।१०३।। आसन्नसिद्धिया भवसत्थिया सिवपहम्मि संठविया । निव्वुइमुर्विति तह जे पडंति ना भीमभवरण्णे ॥१०४।। मुद्धाऽणाययणगया चुक्का मग्गाउ जायसंदेहा ।
बहुजणपुट्ठिविलग्गा दुहिणो या समाहूया ॥१०॥ आयतनम्:
दंसियमाययरणं तेसि जत्थ विहिणा समं हवइ मेलो ।
गुरुपारतंतनो समयसुत्तमो जस्स निप्फत्ती ॥१०६।। मायतनविधि
. दीसई य वीयरायो तिलोयनाहो विरायसहिएहि ।
सेविज्जतो संतो हरइ ह संसारसंतावं ॥१०७।। वाइयमुवगीयं नट्टमवि सुयं दिमिट्ठमुत्तिकरं । कीरइ सुसावएहिं सपरहियं समुचियं जत्थ ॥१०८।। रागोरगो वि नासइ सोउ र गुरूवएसमंतपए । भव्वमणो सालूरं नासइ दोसो वि जन्थाही ॥१०६।। नो जत्थुस्सुत्तजणक्कमु त्थि ण्हाणं बली पइट्ठा य । जइ-जुवइपवेसो वि य न विज्जा विज्जइविमुक्को ॥११०।। जिजत्ता-हाणाई दोसाण जं खयाइ कीरति । दोसोदयम्मि कह तेसि संभवो भवहरो होज्जा ॥१११।। जा रत्ती जारत्थीणमिह रई जणइ जिणवरगिहे वि। सा रयणी रयणियरस्स हेऊ कह नीरयाण मया ॥११२।। साहू सयणासण-भोयणाइअासायणं च कुणमायो । देवह रएण लिप्पइ देवहरे जमिह निवसंतो ।।११३।।
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[ वल्लभ-भारती