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अन्य बृहद्वृत्तियों, लघुवृत्तियों का आश्रय लेकर इस दीपिका की रचना हुई है । यह दीपिका संक्षिप्त होते हुए भी वस्तुतः प्रकरण के लिये दीपिका सदृश ही है । संक्षिप्तरुचि तज्ज्ञों के लिये यह दीपिका अत्यन्त ही महत्त्व की है । भाषा भी इसकी सरल और सुबोध है । संक्षिप्त होने पर भी इसमें प्रतिपादित विषयों का प्रतिपादन बहुत ही सुन्दर ढंग से किया गया है । इसमें दीपिकाकार ने कथानकों का आश्रय लेकर इसका कलेवर बढाने का व्यर्थ प्रयत्न नहीं किया है; उदाहरणों के लिये वृत्तियों का उल्लेख कर दिया है ।
उदयसिंहसूर के संबंध में देसाई अपने "जैन साहित्य नो संक्षिप्त इतिहास' में
लिखा है:
"ते उदयसिंहे चड्डावलि (चन्द्रावती) ना राउल धंधलो देवनी समक्ष मन्त्रवादि ने मन्त्र थी हरायो । तेणे पिण्डविशुद्धि विवरण, धर्मविधिवृत्ति अने चैत्यवन्दन दीपिका रची। अने ते सं० १३१३ मां स्वर्गस्थ थया । पछी कमलसूरि, प्रज्ञासूरि, प्रज्ञातिलकसूरि थया वगेरे । " ( पृ० ४३४)
यह दीपिका जिनदत्तसूरि ज्ञान भंडार बम्बई से प्रकाशित हो चुकी है ।
संवेगदेव गणि
पिण्डविशुद्धि प्रकरण के बालावबोधकार पं० संवेगदेव गणि तपागच्छनायक श्री सोमसुन्दरसूरि के पट्टधर श्रीरत्नशेखरसूरि के शिष्य थे । आपने पिण्डविशुद्धि पर सं० १५'३' में बालावबोध की रचना की है । आपके सम्बन्ध में कोई उल्लेखनीय बात प्राप्त नहीं है । आपकी दूसरी कृति १५१४ में रचित आवश्यक पीठिका पर बालावबोध है । इससे प्रतीत होता है कि समय की मांग को स्वीकार करते हुए आपने अपनी लेखनी को भाषासाहित्य की तरफ मोड़कर समयज्ञता का परिचय दिया है । पिण्डविशुद्धि वालावबोध का आद्यन्त इस प्रकार है:
( श्रा० ) श्रीमद्वीरजिनेशं नत्वा श्रीसोमसुन्दरगुरू ंश्च ।
पिण्डविशुद्ध बलावबोधरूपं तनोम्यर्थम् ॥ १॥
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( श्रं० ) इति श्रीजिनवल्लभसूरिविरचित-पिण्डविशुद्धिप्रकरणस्यार्थो बाला बोधरूपः तपागच्छनायक श्री सोमसुन्दर सूरिशिष्य - विजयमानभट्टारक प्रभु श्री रत्न शेखसूरिशिष्य० पं० संवेगदेव गणिना समर्थितः ।"
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उक्त बालावबोध मूल प्रकरण पर सुन्दर प्रकाश डालता है। भाषा होते हुए भी इसकी भाषा प्रसादगुण से पूर्ण है । भाषा - शास्त्र की दृष्टि से यह बालावबोध विवेचनीय अवश्य है ।
इसकी अनेकों प्रतियां प्राप्त है।
१. जैन सा० सं० ६० के आधार से
वल्लभ-भारती ]
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