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भाद्रपद शुक्ला आश्विन कष्णा " शुक्ला
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सुविधिनाथ नेमिनाथ नमिनाथ
निर्वाण केवलज्ञान , च्यवन
२४. सर्वजिनपञ्चकल्याणक स्तोत्र मदनावतार नामक मात्रिक छन्द में प्रथित सामान्य रूप से (अर्थात जिसमें किसी तीर्थकर विशेष का नाम न लिया गया हो उसे सामान्य कहते हैं) समग्र तीर्थंकरों के च्यवन, जन्म, दीक्षा, ज्ञान और निर्वाण इन पांच कल्याणकों का गुणगौरव और अतिशयों का वर्णन इसमें किया गया है । नामानुरूप मदनावतार की गेयता इसमें परिपूर्णरूप से लक्षित होती है।
२५. प्रथमजिन स्तव ३३ पद्यात्मक इस स्तोत्र में यथासामान्य प्रथम तीर्थपति श्रीआदिनाथ के गुणों की स्तवना और स्वयं की लघुता प्रदर्शित की गई है।
स्तवना की अपेक्षा भी तद्देशीय प्राकृत एवं अपभ्रंश भाषा के छन्दों की विविधता के कारण इसका महत्त्व विशेष है। इसमें दोहा, पद्धटिका, पादाकुलक, वस्तुवदन, मदनावतार, द्विपदी, मात्रा पचपदी, एकावली, क्रीडनक, हक्का, षट्पदी आदि छन्दों का कवि ने स्वतंत्रता से प्रयोग किया है । तत्कालीन प्राकृत-अपभ्रंश स्तोत्र साहित्य में छन्द वैविध्य की दृष्टि से यह रचना संभवतः अजितशान्ति स्तोत्र के बाद सर्वप्रथम ही हो ! परवर्ती काल में इन प्राकृत छन्दों का अपभ्रंश एवं प्राचीन हिन्दी में प्रचुरता से उपयोग हुआ है ।
२६. लघु अजित-शान्तिस्तव इस स्तोत्र का प्रसिद्ध और अपरनाम 'उल्लासि' है। इसमें द्वितीय जिनेश्वर अजितनाथ और सोलहवें तीर्थंकर शान्तिनाथ की स्तुति की गई है। श्वेताम्बर जैन-स्तोत्र-साहित्य में प्रसिद्धतम 'अजितशान्तिस्तव' के अनुकरण पर कवि ने इसकी रचना की है । कोमल-कान्तपदावली का जो लालित्य और संगीत अजितशान्ति स्तव में है, उससे कुछ अधिक ही इसमें प्राप्त हो सकती है। जिन पदों में दोनों तीर्थङ्करों की स्तुति एक साथ की गई हैं, उनमें कवि की शब्द-योजना तथा भाषासौष्ठव देखते ही बनता है।
आचार्य जिनवल्लभ-प्रणीत समग्र प्राकृत स्तोत्रों में यह सर्वश्रेष्ठ है ।
इस स्तोत्र का आज भी खरतरगच्छ समाज में त्रयोदशी एवं विहार के दिवमों में पठन-पाठन प्रचलित है और दैनिक संस्मरणीय सप्तस्मरण स्तोत्रों में इसका द्वितीय स्थान है। इसकी लोकप्रियता और प्रभावोत्पादकता का इससे अधिक और क्या प्रमाण हो सकता है! २७-२६. क्षुद्रोपद्रवहर-पार्श्वनाथ स्तोत्र, स्तम्भनपार्श्वनाथ स्तोत्र
एवं महावीर विज्ञप्तिका क्षुद्रोपद्रवहर पार्श्वनाथ स्तोत्र २२ आर्याओं में ग्रथित है। इस स्तोत्र में भगवद्गुणवल्लभ भारती]
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