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करना, वर्षीदान देना तथा दीक्षा पश्चात् देवदूष्य वस्त्र धारण करना आदि समग्र कृत्य तीर्थंकरों के लिये होते ही हैं। अतः उनका वर्णन सभी चरित्रों में किया गया हैं ।
२१. चतुर्विंशति जिन-स्तोत्राणि
इसमें कवि ने प्रत्येक तीर्थंकर के जीवन के १५ प्रसंगों का उल्लेख बड़ी सफलतापूर्वक किया है । पद्यों की कुल संख्या १४५ है; जिसमें अन्तिम पद्य कविनाम गर्भित उपसंहार का है । इसकी भाषा प्राकृत और छन्द आर्या है ।
वस्तुतः चरित्र षट्कान्तर्गत ६३ प्रसंगों और इस स्तोत्र के अन्तर्गत विषयों का आश्रय लेकर परवर्ती कवियों ने 'सप्ततिशतस्थानक प्रकरण' आदि ग्रन्थों की रचना की है। श्वेताम्बर जैन - साहित्य में इस प्रकार की तथा पंचकल्याणका गर्भित स्तोत्रादि कृतियों के प्रादुर्भाव कह श्रय सर्वप्रथम आचार्य जिनवल्लभ को ही है ।
इस स्तोत्र में वर्णित विषय को निम्नलिखित ढंग से दिखाया जा सकता है:
क्रमाङ्क
१.
२
३.
४.
५.
६.
७.
८.
ε.
१०.
११.
१२.
१३.
२४.
१५.
१६.
१७.
१५.
१६.
२०.
२१.
२२.
२३.
२४.
११२ ]
श्री आदिनाथ
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तीर्थङ्कर नाम
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अजितनाथ
संभवनाथ
अभिनन्दन
सुमतिनाथ
पद्मप्रभ
सुपार्श्वनाथ
चन्द्रप्रभ
सुविधिनाथ
शीतलनाथ
श्रेयांसनाथ
वासुपूज्य विमलनाथ
अनन्तनाथ
धर्मनाथ शान्तिनाथ
कुन्थुनाथ
अरनाथ
मल्लिनाथ
मुनिसुव्रत
नमिनाथ
नेमिनाथ
पार्श्वनाथ
महावीर
च्यवन स्थान
सर्वार्थसिद्ध विजय
सप्तम ग्रैवेयक
जयन्त
जयन्त
नवम ग्रैवेयक
षष्ठ वैवेयक
वैजयन्त
प्रारणत
प्राणत
अच्युत
प्रारणत
सहस्रार
प्रारपत
विजय
सर्वार्थसिद्ध
जयन्त
अपराजित
प्रारणत
अपराजित
प्रारणत
प्राणत
च्यवन तिथि
आषाढ कृ० ४ वैशाख शु० १३
फाल्गुन शु० प
वै० शु० ४
श्रा० शु० २
माघ कृ० ६
भा० कृ० ८
चै० कृ० ५
फा० कृ० ह
वै० कृ० ६
ज्ये ० कृ० ६
ज्ये० शु० ६
वै० शु० १२
श्रा० कृ० ७
वै० शु० ७
भा० कृ० ७
श्रा० कृ० १
फा० शु० २
फा० शु० ४
श्रा० शु० १५ आश्विन शु० १५
का० कृ० १२
चै० कृ० ४
आषाढ शु० ६
जन्म भूमि
विनीता
21
श्रावस्ती
विनीता
कोशल
कौशाम्बी
वाराणसी
चन्द्रपुरी
काकंदी
भद्दिलपुर
सिंहपुरी
चम्पापुरी
कम्पिलपुर
अयोध्या
रत्नपुरी हस्तिनापुर
19
मिथिला राजग्रही
मिथिला
शौरीपुर
वाराणसी
क्षत्रियकुण्ड
[ वल्लभ-भारती